16 फरवरी 2020, नई दिल्ली: संस्कृति मंत्रालय और आई.जी.एन.सी.ए के सहयोग से 'दिव्य ज्योति जागृति संस्थान (डी.जे.जे.एस)' ने विज्ञान भवन में एक अद्भुत वैदिक रीइंजीनियरिंग कॉन्क्लेव - 'अमृतस्य पुत्र:' का आयोजन किया।
कार्यक्रम में मौज़ूद 1200 से अधिक प्रतिभागियों में कई शीर्ष पदाधिकारी, डॉक्टर, वकील, उद्यमी, शिक्षाविद और कॉलेज के छात्र इत्यादि शामिल थे। प्रोग्राम में मुख्य अतिथि के तौर पर श्री सोम प्रकाश जी (राज्य मंत्री, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार), आलोक कुमार एडवोकेट (अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष, वीएचपी), डॉ सुधीर लाल (परियोजना निदेशक, वैदिक पोर्टल, आई.जी.एन.सी.ए), और अनंत किशोर सरन (निदेशक, पुलिस, गृह मंत्रालय) भी शामिल हुए।
इस कॉन्क्लेव को आयोजित करने के पीछे संस्थान का उद्देश्य समाज के बुद्धिजीवी वर्ग को ऋषि-मनीषियों की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रिसर्च से अवगत कराना था। जिन शोधों को आधुनिक जीवन के अनुरूप बनाने के लिए संस्थान के पीस प्रोग्राम की ये उल्लेखनीय पहल थी। पीस प्रोग्राम की संयोजक साध्वी तपेश्वरी भारती जी के अनुसार, ‘अपनी सांस्कृतिक जड़ों से दूर हो चुका आज का इंसान तनाव, अनिद्रा, अवसाद, रिश्तों में कड़वाहट इत्यादि समस्यायों से जूझ रहा है। इन्हीं परेशानियों से निजात पाने के लिए इस कार्यशाला के सत्रों में वेदों से उद्धृत समकालीन समाधान प्रदान किए गए है। जिनमें ऋषि-शोधकर्ताओं की पंच-कोष तकनीक को एक 5-आयामी री-इंजीनियरिंग मॉडल के रूप में प्रतिभागियों के समक्ष प्रस्तुत किया गया।’
नृत्य-नाटिकाओं, प्रेरक वार्ताओं, उपनिषद्-आधारित मॉडल, गूढ़ व रोचक एक्टिविटीज़ इत्यादि से युक्त इस वर्कशॉप में कुल छ: सत्र आयोजित हुए जिनका संचालन संस्थान की विदुषी एवं अनुभवी प्रचारिकाओं ने किया। साथ ही कार्यशाला में भाग लेने वाले प्रत्येक सदस्य को संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार व संस्थान द्वारा स्वीकृत सर्टिफिकेट भी दिए गए।
प्रथम कोष (अन्नमय) पर आधारित ‘वैदिक जिम’ में धनुर्वेद एवं नाट्य शास्त्रों से विविध एरोबिक नृत्य-मुद्राएँ उद्धृत की गई। साथ ही इसी कोष के अंतर्गत ‘वैदिक फैशन शो’ भी आयोजित किया गया- जिसमें वेदकालीन वेश-भूषा के विज्ञान को दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
‘वैदिक डिटोक्स’ नामक सत्र द्वितीय कोष (प्राणमय) पर आधारित था। इसमें नवीन प्राणायामों की मदद से प्रतिभागियों को शारीरिक एवं भावनात्मक डिटोक्स प्रदान किया गया।
षोडश संस्कारों और दांपत्य सूत्र से प्रेरित चौथे सत्र में वैदिक-युग में विवाहित जोड़ों, परिवार, और समाज के बीच के सु-संबंधों को नृत्य-नाटिका के माध्यम से मंचित किया गया। तृतीय कोष (मनोमय) पर आधारित इस सत्र का नाम ‘सु-सम्बधों के लिए वैदिक औषधि’ था।
चतुर्थ कोष (विज्ञानमय) पर आधारित सत्र में योग निद्रा के गहन विषय के द्वारा विश्रामपूर्ण नींद प्राप्त करने के प्राचीन उपाय पर प्रकाश डाला गया।
पंचम कोष (आनंदमय) पर आधारित, ‘वैदिक दीक्षा’ नामक सत्र था। इसमें उपनिषदों से उद्धृत वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक मॉडलों के माध्यम से ध्यान की परम-विधि के विषय पर प्रेरक व्याख्यान दिया गया।
सम्मेलन का समापन हृदय को आह्लादित कर देने वाली संगीतमयी प्रस्तुति से हुआ।