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वर्तमान समय में यदि हम ध्यान दे तो ज्ञात होता है कि हर ओर एक शोर व्याप्त है। स्मार्टफोन आज हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। लोग सुबह उठने के लिए अलार्म घड़ी का उपयोग करने के बजाय मोबाइल फोन में अलार्म सेट करते है। आज लोग किसी न किसी कार्य से अपना पूरा समय मोबाइल फोन की जांच और उपयोग में बिता देते हैं और उनका दिन भी मोबाइल के साथ ही समाप्त होता है। इसके अलावा, आधुनिक जीवन में बढ़ते तनाव से निपटने के लिए कई डिजिटल एप्लीकेशन्स भी विकसित की गई हैं। इन एप्लीकेशन्स के उपयोग व लाभ के लिए व्यक्ति को मोबाइल की आवश्यकता होती है। इन एप्लीकेशन्स में ध्यान करने के तरीके पर ऑडियो/वीडियो चर्चाएं शामिल हैं। इस संबंध में, मस्तिष्क को स्थिर करने के लिए वाद्ययंत्र संगीत पद्धति अत्यंत लोकप्रिय है। उपयोगकर्ता अपनी पसंद के अनुरूप किसी भी वाद्ययंत्र का चयन कर पूरे दिन उसके विभिन्न संस्करणों को सुन सकता है। इन प्रयासों से कुछ लाभ तो हो सकता है लेकिन बाहरी साधनों द्वारा कभी भी भीतरी स्थिर शांति को प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

यहां यह ध्यान देना आवश्यक है कि सुखदायक संगीत का मस्तिष्क पर क्षणिक सकारात्मक प्रभाव इसलिए होता है क्योंकि ये वाद्यंत्र वास्तव में आंतरिक संगीत के प्रतीक हैं। उदाहारण के लिए भगवान शिव के एक हाथ में स्थित त्रिशूल से डमरू जुड़ा होता है। यह डमरू  भगवान शिव द्वारा स्थापित कोई सजावटी वस्तु नहीं है अपितु यह वाद्ययंत्र गहन आध्यात्मिक अर्थ रखता है। इससे प्रस्फुटित होता संगीत उस नाद की ओर इंगित करता है जो इस संसार के अस्तित्व का सार है। इस नाद को सुनने के लिए हमें किसी प्रकार के वाद्ययंत्र को अपने पास रखने की आवश्कता नही है क्योंकि यह नाद ब्रह्मज्ञान के माध्यम से आंतरिक जगत में सुना जाता है। साध्वी लोकेश भारती जी ने 7 अगस्त, 2018 से 13 अगस्त, 2018 तक पिथौरागढ़ में आयोजित शिव कथा में यह समझाया।

साध्वी जी ने कहा कि एक वास्तविक आध्यात्मिक गुरु की कृपा से प्राप्त ब्रह्मज्ञान ही वह प्रक्रिया जिसके माध्यम से एक व्यक्ति स्थायी रूप से आंतरिक शांति के प्रति सचेत हो सकता है। सतगुरु व्यक्ति के भीतर ईश्वरीय चेतना को जागृत करते है जिसके द्वारा वह दिव्य ध्वनि को सुनने में सक्षम बनाता है। व्यक्ति को आंतरिक शांति व आत्मिक सम्बन्ध को स्थापित करने के लिए बाहरी वस्तु की आवश्यकता नहीं होती है, अपितु सर्वप्रथम व्यक्ति को पूर्ण सतगुरु की खोज करनी होती है। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान इसी आध्यात्मिक यात्रा का प्रामाणिक मार्ग है इसलिए संस्थान में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी द्वारा ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के लिए सभी श्रद्धालुओं का स्वागत है।
 

Eternal Sound of Shiva Reverberated at Shiv Katha Held in Pithoragarh, Uttarakhand

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