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श्री गुरु ग्रंथ साहिब में कहा गया है कि निष्काम एवं निस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले स्वतः ही अपने इष्ट, गुरुदेव को प्राप्त कर लेते हैं। आध्यात्मिकता कोई सिद्धि नहीं जिसे एक बार प्राप्त कर लिया जाए अपितु यह तो एक जीवन शैली है और आध्यात्मिकता के इस जटिल मार्ग पर  निस्वार्थ सेवा एवं ध्यान-साधना रुपी कवच के सहारे ही मनुष्य आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो पाता है।  निस्वार्थ एवं निष्काम भाव से की गई सेवा से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है।

'Guruvar Ki Aashayein', A Divine Event Highlighting Significance of Gurus Expectations at Divya Dham Ashram, Delhi

दिनांक 6 अक्टूबर 2019 को डीजेजेएस द्वारा नई दिल्ली में स्तिथ दिव्य धाम आश्रम में "गुरुवर की आशाएँ" नामक विलक्षण आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसका उद्देश्य गुरुदेव के पावन उद्देश्य एवं अपने शिष्यों से उनकी अपेक्षाओं को शिष्यगणों तक पहुँचाना था। कार्यक्रम का श्रीगणेश गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की पावन आरती के साथ किया गया। तत्पश्चात भावपूर्ण भजन संगीत ने सभी शुष्क हृदयों को भक्ति के प्रेम से भावविभोर कर डाला। प्रचारक शिष्य एवं शिष्याओं द्वारा शिष्य और गुरु के मध्य के उस बंधन को समझाया गया जो एक गुरु अपने शिष्य से स्थापित करते हैं। गुरु एवं शिष्य के मध्य का यह सूक्ष्म सम्बन्ध भौतिकता से परे है। गुरु कभी भी अपने शिष्य को उसके किसी भी दोष के लिए दण्डित नहीं करते वह अपने शिष्य के लिए उस दर्पण स्वरुप है जिसे देख कर एक शिष्य स्वयं को दोष मुक्त पाता है। वह अपने शिष्य को अपना दिव्य सानिध्य  प्रदान कर उसके भीतर से अहंकार, ईर्ष्या जैसे दुर्गुणों का समूल नाश करते हैं।

गुरु चरणों में समर्पित शिष्य का अपने गुरु से तारतम्यता का सम्बन्ध स्थापित होता है जिससे वह आत्म उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है। एक शिष्य जब स्वयं को गुरु को समर्पित करता है तब गुरु एक कुम्हार की ही भांति उसे अपना आकर प्रदान करते हैं।  अतः एक शिष्य के लिए यह परमावश्यक है कि वह सदैव गुरु आज्ञा का अनुसरण करे।  गुरु आज्ञा रुपी कवच से ही वह स्वयं को क्रोध, वासना, अभिमान, एवं अन्य आसक्तियों से मुक्त करा सकता है। गुरु आज्ञा का अनुसरण ही शिष्य के आध्यात्मिक विकास का साधन है अतः एक शिष्य को सदैव सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए। गुरु द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा शिष्य के लिए प्रसाद समान है जिससे शिष्य को कभी चूकना नहीं चाहिए। सेवा एवं साधना हमारे मन एवं आत्मा के लिए औषधि के समान है जिसके नियमित सेवन से एक शिष्य का जीवन आनंद एवं शान्ति से भर उठता है। दान के महत्व को दर्शाने के लिए एक सुन्दर नृत्य नाटिका का आयोजन किया गया जो कि कार्यक्रम के आकर्षण का केंद्र रही।  भारतीय संस्कृति में दान देने की परंपरा युगों से चलती आ रही है, किन्तु वर्तमान में यह परंपरा अपना अर्थ खोती जा रही है।  एक मनुष्य को सदैव अपने सामर्थ्य के अनुसार समाज के कल्याणार्थ दान एवं सहयोग करना चाहिए यही एक व्यक्ति द्वारा समाज के प्रति वास्तविक योगदान है। इस कार्यक्रम ने शिष्यों को एक साधक के जीवन में गुरु आज्ञा के महत्व को समझाया  ताकि प्रत्येक शिष्य गुरु की अपेक्षाओं पर खरे उतर कर आध्यात्म की बुलंदियों तक पहुँच पाए।

'Guruvar Ki Aashayein', A Divine Event Highlighting Significance of Gurus Expectations at Divya Dham Ashram, Delhi

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