गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य व वृहद लक्ष्य के अंतर्गत दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 25 फरवरी 2020 को पंजाब के कपूरथला क्षेत्र में “माता की चौकी” आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता साध्वी मंगलावती भारती जी थीं, जिन्होंने श्री आशुतोष महाराज जी के अन्य शिष्यों के साथ, आत्म-साक्षात्कार के दिव्य पथ के प्रति जन-जन को जागृत करने हेतु विचारों को प्रस्तुत किया।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं को उनके वास्तविक स्वरूप से परिचित करवाना ही इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था। नवरात्रों में हम सभी जगदम्बा के नौ दिव्य रूपों में माँ शक्ति की पूजा करते हैं। माँ दुर्गा ब्रह्माण्ड की जननी है, वह शक्ति जिससे सृष्टि का सृजन, निर्वाह और विघटन होता है। दुर्गा का अर्थ है, जो हमें सभी कठिनाइयों से परे ले जाए। माँ दुर्गा, चेतना रूप में प्रत्येक व्यक्ति के भीतर निवास करती है, जो ज्ञान और दिव्य शक्ति की स्रोत है। देवी शक्ति सभी परिवर्तनकारी ऊर्जा और प्रलयकारी शक्ति का मूल है जिसे मानव मात्र तर्क द्वारा समझ नहीं सकता है।
अपने प्रवचन में, साध्वी जी ने सांसारिक माँ के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, परिवार व समाज में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर किया। उन्होंने बताया कि संसारिक माँ मात्र अपनी सन्तान के प्रति स्नेह रखती है परन्तु वहीँ जगतजननी दिव्य माँ सभी जीवों पर स्नेह रखती हैं। देवी माँ का प्रेम व्यक्ति को संघर्षों से जूझने, मानसिक स्थिरता व विकारों को समाप्त करने हेतु सामर्थ्यवान बनाता है। माता की चौकी में दिव्य माँ की महिमा को गाते हुए बताया गया है कि हमारी संस्कृति में देवी को पूजनीय स्वीकार किया गया है। माँ शक्ति धरा पर शांति और सद्भाव को बनाए रखने हेतु सभी बुराइयों और नकारात्मकताओं को नष्ट कर देती है, ताकि मानव जाति सकारात्मकता और विकास पथ पर आगे बढ़ सके। माता की चौकी मात्र लिंग समानता का संदेश ही जन-जन तक नहीं पहुंचाती है, बल्कि एकता, मित्रता और आनंद का संदेश भी देती है।
साध्वी जी ने विचारों में मानव जीवन में पूर्ण सतगुरु के दिव्य मार्गदर्शन महत्व को समझाया। गुरु शिष्य को ब्रह्मज्ञान प्रदान कर, आत्मिक उत्थान के शिखर तक ले जाते हैं। सतगुरु की कृपा द्वारा ही एक शिष्य निःस्वार्थ प्रेम और असीम आनंद के वास्तविक अर्थ को जान पाता है। सतगुरु का सम्बन्ध इस संसार के सभी सम्बन्धों से श्रेष्ठ है क्योंकि गुरु साधक को दिव्य प्रकाश से परिचित करवाते हैं। सतगुरु द्वारा प्रदत्त ब्रह्मज्ञान एकमात्र अचूक सूत्र है जो समाज में लिंग संतुलन स्थापित कर सकता है क्योंकि ब्रह्मज्ञान द्वारा जीव देह से ऊपर उठकर आत्मिक-स्तर का अनुभव कर पाता है। आत्मिक-स्तर पर जागृत समाज ही वास्तविक लिंग संतुलन स्थापित कर सकता है।