क्या दशा होती है आत्मा विहीन तन की? क्या स्थिति होती एक बाग़ की यदि उसमे माली न हो? क्या अर्थ है उस पुष्प का जिसमे सुगंध न हो? क्या शिक्षक के अभाव में ज्ञान सम्भव है? यदि महाभारत ग्रंथ में श्री कृष्ण के उपदेश न हो तो क्या यह ग्रंथ अपनी महिमा को सहेज पाएगा? आज यही स्थिति मानव की हो रही है जो अपने मूल को विस्मृत कर अपनी गरिमा को मिटाता जा रहा है। जिस प्रकार एक माली अपने बाग़ के प्रत्येक फूल और पौधे की देखभाल करता है, उसी प्रकार ईश्वर अपने जीव के उद्धार हेतु पूर्ण सतगुरु का रूप धारण कर मानव को उसके मूल से जोड़ उसका मार्गदर्शन करते हैं।
मानवीय जीवन के महान और सर्वोच्च लक्ष्य का एहसास कराने के लिए, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा रविवार 10 मार्च, 2019 को जालंधर स्थित नूरमहल आश्रम में मासिक आध्यात्मिक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन द्वारा जीवन में गुरु की महत्ता व भक्ति पथ पर बढ़ते साधकों के कर्तव्यों को रखा गया।
कार्यक्रम की शुरुआत सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के चरण कमलों में प्रार्थना द्वारा हुई। भक्ति गीतों और भजनों की श्रृंखला ने भक्ति भावनाओं को सबल किया और शिष्यों के भाव, अश्रुओं के रूप में बह निकले। गुरु, शिष्य की हृदय भूमि में ज्ञान का दिव्य बीज रोपित करते है। और तब तक उसका संरक्षण करते है, जब तक कि वह मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेता। इस आध्यात्मिक यात्रा में शिष्य बहुत सी चुनौतियों से गुजरता है, साथ ही गुरु भी उसकी आस्था, धैर्य, विश्वास और पवित्रता को परखते है। स्वामी विवेकानंद ने आत्म-अनुसंधान की महिमा को अपने शब्दों में व्यक्त किया है। उन्होंने समझाया कि आत्मा का ध्यान ही मानव को आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है इसलिए ध्यान प्रक्रिया द्वारा आत्मा के साथ निरंतर संचार और संपर्क में रहना अनिवार्य है। परन्तु यह मात्र पूर्ण सतगुरु के मार्गदर्शन में ही सम्भव है।
संस्थान के प्रचारकों ने अपने अमूल्य दिव्य अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि गुरु निरंतर शिष्य के मार्ग में आने वाले संघर्षों से किस प्रकार उसकी रक्षा करते है एवं स्वयं उसका दिव्य मार्गदर्शन कर उसे भक्ति मार्ग पर आगे की ओर प्रेरित करते है। वर्तमान में भी संस्थान गुरुदेव के आदर्शों व दिव्य अनुभवों द्वारा प्रदत्त मार्गदर्शन से विश्व स्तर पर दृढ़ता से सक्रिय है।
इस कार्यक्रम ने पुनः शिष्यों को जीवन में दिव्य गुणों को धारण करते हुए, शिष्य धर्म निभाने हेतु प्रेरित किया। उपस्थित साधकों ने स्वयं को आध्यात्मिक ऊर्जा से ऊर्जावान अनुभव करते हुए चरैवेति-चरैवेति की धुन को गुनगुनाया। शिष्यों ने ध्यान प्रक्रिया द्वारा अपने विचारों को सकरात्मकता व दिव्यता से परिपूर्ण करते हुए, जीवन की हर विकट परिस्थिति में भी आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने का संकल्प लिया।
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