प्रत्येक माह की तरह डबवाली मलको की, पंजाब में आध्यात्मिक कार्यक्रम लोगों के बीच असीम श्रद्धा का स्त्रोत बना l 4 अगस्त 2019 को कार्यक्रम के शुरू होने के निर्धारित समय से पहले ही असंख्य श्रोतागण कार्यक्रम स्थल पर पहुंच चुके थे l श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्यों ने उपस्थित जिज्ञासुओ से एक प्रश्न के साथ प्रवचन शुरू किया कि जीवन नश्वर है और मृत्यु निश्चित है फिर भी मनुष्य यानि हम अपना सारा जीवन भौतिक वस्तुओं को प्राप्त करने में क्यों लगा देते हैं? क्या हमें अपनी शारीरिक जरूरतों और कर्तव्यों को पूरा करते हुए मृत्यु के लिए तैयार नहीं होना चाहिए? प्रवचनों का आधार इन्हीं सवालों के विस्तार पर था l
स्वामी जी ने यक्ष द्वारा पूछे गए प्रश्नों पर युधिष्ठिर कि प्रतिक्रिया का उदहारण देते हुए कहा कि इस पृथ्वी पर सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मनुष्य यह भूल जाता है कि जीवन नश्वर है और एक दिन उसे मृत्यु का सामना करना पड़ेगा l मृत्यु को मानव जीवन का अंत एवं आत्मा को एक शरीर को त्याग दूसरे शरीर को धारण करने के रूप में चिन्हित किया गया है l श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्णा ने कहा है कि जिस प्रकार व्यक्ति स्नान के बाद पुराने वस्त्रों को त्याग नये वस्त्रों को धारण करता हैं ठीक इसी प्रकार आत्मा भी एक शरीर को त्याग नये शरीर को धारण करती हैं l मनुष्य को मृत्यु पर विलाप नहीं करना चाहिए क्योंकि यह तो प्राकृतिक नियम हैं जिसके उपरांत आत्मा मूल स्त्रोत परमात्मा से मिलती हैं l अक्सर संसार में देखा जाता है कि जन्म को उत्सव के रूप में मनाया जाता हैं एवं मृत्यु पर विलाप किया जाता है l कहा जाता है कि जो लोग उस शाश्वत ज्ञान के द्वारा ईश्वर की प्राप्ति कर लेते है उन्हें मृत्यु पर विजय प्राप्त होती हैं l
स्वामी जी ने नचिकेता की कहानी सुनाते हुए कहा कि नचिकेता एक छोटा सा बालक था जब उनके पिता ऋषि वाजश्रवस ने उन्हें यमराज को दान रूप में दिया l पिता के वचन का पालन करते हुए नचिकेता यमराज कि शरण में पहुँच जीवन और मृत्यु के रहस्य की खोज करने लगे l नचिकेता की जिज्ञासा को देखकर यमराज ने उन्हें ब्रह्मज्ञान द्वारा आत्मानुभूति (ईश्वर के दर्शन) करवाई जिसके द्वारा उन्होंने स्वयं को जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त कर लिया l नचिकेता की कथा हमें दिव्य ज्ञान प्राप्त कर भक्ति के मार्ग पर दृंढ होकर चलने लिए प्रेरित करती हैं क्योंकि यह पथ ही हमें मुक्ति की और ले जाता हैं l
आगे स्वामी जी ने महात्मा बुद्ध के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महात्मा बुद्ध का जीवन हमें बहुत प्रेरणा देता है l उनकी विचार प्रक्रिया ने एक शव के दर्शन के बाद आध्यात्मिक मोड़ ले लिया क्योंकि जब उन्होंने पहली बार शव को देखा तो उन्हें लगा की एक दिन मृत्यु आने पर यह सुन्दर शरीर भी राख हो जाता है और यही जीवन की सत्यता हैं l वर्तमान समय के ब्रह्मनिष्ठ गुरु श्री आशुतोष महाराज जी कहते हैं कि मनुष्य को जीवन के रहते हुए जीवन के परम लक्ष्य 'ईश्वर' को ब्रह्मज्ञान द्वारा प्राप्त करना चाहिए l
ऐसे प्रेरणात्मक विचारो को श्रवण कर श्रद्धालुओं में आत्मानुभूति कर आध्यात्मिक उत्थान की भावना जागृत हुई जो जीवन में संतुलन स्थापित करती है और मृत्यु को जीवन का उत्सव बनाती है l