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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा रविवार, 26 जनवरी, 2020 को दिव्य धाम आश्रम, नई दिल्ली में 71वां गणतंत्र दिवस मनाया गया। हजारों भक्त श्रद्धालुओं ने आध्यात्मिकता से ओत प्रोत इस देशभक्ति कार्यक्रम में भाग लिया। देशभक्ति के रंगों में सराबोर गीतों की श्रृंखला ने देश प्रेम की भावना से सभी हृदयों को स्पंदित किया।

Republic Day Event SANKALP Infused Patriotism Through Spiritual Awakening at Divya Dham Ashram

गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक एवं संचालक, DJJS) के प्रचारक शिष्यों एवं शिष्याओं द्वारा प्रबुद्ध व्याख्यानों ने भक्तों के निष्क्रिय सकारात्मक लक्षणों को जागृत किया। आध्यात्मिक प्रवचनों में यह बताया गया कि आत्मिक स्तर पर मुक्त होने के लिए प्रत्येक शिष्य को सतगुरु की आज्ञा का पालन करना पड़ता है। आत्म-जागृति के माध्यम से ही विश्व शांति को साकार किया जा सकता है। डीजेजेएस द्वारा आज समाज में आध्यात्मिक जागृति के माध्यम से जनमानस में ऐसे मूल्यों और सिद्धांतों को विकसित किया जा रहा है जो एक सच्चे साधक बनने के लिए अनिवार्य हैं, ऐसे सृजक साधक जो अपने देश की सेवा हेतु हमेशा तैयार रहते हैं।

कार्यक्रम में स्वामी विवेकानंद जी के प्रेरणादायक एवं प्रेरक जीवन पर आधारित संस्थान के युवा स्वयंसेवकों द्वारा एक नाट्य प्रस्तुति भी की गई। इस नाटक द्वारा आधुनिकता व पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित युवा द्वारा भारतीय संस्कारों का त्याग व भारत में सनातन धर्म के पुनरुत्थान आदि विषय को गंभीरता से दर्शाया गया। स्वामी विवेकानंद जी में अध्यात्म के प्रति आकर्षण था। जैसे-जैसे वे बड़े हुए ईश्वर की खोज हेतु कई संतों से मिले, लेकिन वह सभी संत, विवेकानंद जी की भावनाओं को संतुष्ट नहीं कर पाएं। पूर्ण गुरु की काफी खोज करने के बाद उनकी भेंट स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी से हुई जिन्होंने उन्हें "ब्रह्मज्ञान" प्रदान कर ध्यान की दिव्य तकनीक से अवगत कराया! विवेकानंद जी ने अपने अंतर घट में ईश्वर का आत्म-साक्षत्कार किया। तत्पश्चात, उन्होंने वेदांत और योग के भारतीय दर्शन से पश्चिमी दुनिया को परिचित करवाया। 11 सितंबर 1893 को, स्वामी विवेकानंद जी ने भारतीय प्रतिनिधि के रूप में अमेरिका में “The World's Parliament of Religions” में भाग लिया। उनके विचारों से विद्वत समाज इतना प्रभावित था कि उन्हें सुनने के लिए कई घंटों तक प्रतीक्षारत रहता था।

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स्वामी विवेकानंद जी वास्तविक अर्थों में एक संन्यासी थे। उन्होंने विश्व में समाज को वास्तविक धर्म से परिचित करवाने हेतु अपने विचारों को रखा। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वास्तविक धर्म, शब्दों, रीती-रिवाज़ों व अन्य किसी भी गतिविधि में नहीं बसता है, वास्तविक धर्म तो ईश्वर की प्रत्यक्ष अनुभूति से आरम्भ होता है। ईश्वर-दर्शन के अभाव में धर्म, समाज कल्याण हेतु कारगर सिद्ध नहीं हो सकता। जागृत व दिव्य आत्मा ही मानव में ईश्वर-साक्षत्कार कराने हेतु सक्षम है, जिसे भारत में सतगुरु कहकर सम्बोधित किया जाता है। कार्यक्रम द्वारा प्रत्येक हृदय में आध्यात्मिक एवं राष्ट्र भक्ति के प्रति प्रेरित किया गया।

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