जगद्गुरु भगवान श्री कृष्ण का जीवन चरित्र सम्पूर्ण मानव जाति के लिए प्रेरणास्वरूप है । श्री कृष्ण की प्रत्येक लीला, मानव जाति को धर्म, एवं भक्ति के वास्तविक अर्थ को समझाते हुए आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देती है।
श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था जहाँ मथुरा नरेश कंस ने श्री कृष्ण के माता- पिता, देवकी और वासुदेव जी को बंदी बना कर रखा गया था। श्री कृष्ण ने सदैव ही अपने जीवन में आने वाली प्रत्येक विपत्ति का सामना धैर्यपूर्वक एवं मुस्कराहट के साथ किया एवं सम्पूर्ण मानव जाति के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया कि किस प्रकार धर्म के मार्ग पर चलते हुए धैर्य एवं संयम के साथ विपरीत परिस्थितियों से पार पाया जा सकता है।
अपने जीवन चरित्र के माध्यम से उन्होंने एक और बहुत ही महत्वपूर्ण गुण को हमारे सामने प्रस्तुत किया। वह गुण था उनकी समदृष्टि। उनका व्यवहार प्रत्येक जन, चाहे वह गोप- गोपियाँ हो, चरवाहे अथवा कोई विद्वान पंडित हो, सभी के लिए एक समान था। उनकी प्रेम एवं करुणामयी कृपा सब पर एक समान थी। वर्तमान में, जन मानस को भगवान श्री कृष्ण के इन्हीं आदर्शों से परिपोषित करने एवं समाज में व्याप्त असमानता, जाति- पाति एवं भेदभाव को मिटाने के लिए दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान कार्यरत है। समाज से असमानता एवं भेदभाव रुपी व्याधि का अंत करने का एकमात्र उपाय ब्रह्मज्ञान है। ब्रह्मज्ञान के माध्यम से ही मनुष्य संकीर्ण दायरों को तोड़ कर वास्तविकता में आध्यात्म की ओर अग्रसर होता है।
पंजाब के होशियारपुर में गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य सानिध्य में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा दिनांक 24 सितंबर से 28 सितंबर, 2019 तक 5 दिवसीय श्री कृष्ण कथा का आयोजन किया गया जहाँ साध्वी जयंती भारती जी ने भगवान श्री कृष्ण की दिव्य लीलाओं एवं उनमें निहित दिव्य संदेशों को सभी के समक्ष सांझा किया। कार्यक्रम का आरम्भ प्रभु की पावन चरण स्तुति के साथ किया गया। तदोपरांत वेद-मन्त्रों का उच्चारण एवं भजनों की मधुर श्रृंखला के साथ कार्यक्रम को आगे बढ़ाया गया। कार्यक्रम में साध्वी जी ने ब्रह्मज्ञान के महत्त्व को समझाते हुए बताया कि केवल ब्रह्मज्ञान के माध्यम से ही मनुष्य जीवन की प्रत्येक विषमता के विपरीत स्वयं को स्व में स्थित कर जीवन में आने वाले सुख-दुःख, लाभ- हानि, विजय- पराजय से परे आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो पाता है। भगवान श्री कृष्ण के कुरुक्षेत्र के मैदान में मोहआसक्त अर्जुन को यही ब्रह्मज्ञान प्रदान किया था। ब्रह्मज्ञान प्राप्त होने के उपरांत ही अर्जुन का विवेक जाग्रत हुआ और उसने पुनः अपने गांडीव और शस्त्रों को धारण कर धर्म युद्ध लड़ा। साध्वी जी ने बताया की वर्तमान समय में गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी जन मानस को इसी ब्रह्मज्ञान से लाभान्वित कर रहे हैं। सभी ने इस कार्यक्रम का आनंद उठाया एवं ब्रह्मज्ञान के नियमित अभ्यास द्वारा श्री कृष्ण द्वारा बताए दिव्य संदेशों का अनुसरण करने का निश्चय किया।