'रामायण’ की कालजयी शिक्षाएं भक्तों को अपनी अंतर-आत्मा से जुड़ने व परमात्मा के साथ संबंध गहरा करने के लिए प्रेरित करती रहें, यह सुनिश्चित करने के लिए दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक एवं संचालक, डीजेजेएस) की अपार कृपा व आशीर्वाद से दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (डीजेजेएस) द्वारा बठिंडा, पंजाब में 4 से 10 अक्तूबर 2024 तक श्री राम कथामृत का भव्य आयोजन किया गया। कथा का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म के प्राचीन ज्ञान को पुनर्जीवित कर समकालीन सामाजिक समस्याओं से जोड़ते हुए आंतरिक रूपांतरण व सामूहिक सद्भाव की दिशा की ओर प्रेरित करना रहा। कथा प्रवचनों, भावपूर्ण भजनों व आध्यात्मिक मार्गदर्शन की एक सप्ताह लंबी शृंखला रही। प्रभु श्री राम के परिप्रेक्ष्य से,कथाव्यास साध्वी श्रेया भारती जी ने सांसारिक चुनौतियों के बीच एक संतुलित व आध्यात्मिक रूप से समायोजित जीवन जीने की शिक्षा दी।

कथा का शुभारंभ प्रार्थना द्वारा भगवान राम के भव्य आह्वान व उनके जीवन और ज्ञान के परिचय के साथ हुआ। साध्वी जी ने भगवान राम को धर्म व करुणा का प्रतीक बताते हुए समझाया कि कैसे उनका जीवन मानवता के लिए स्वयं व दूसरों के साथ सद्भाव से रहने की रूपरेखा के तौर पर कार्य करता है। श्री राम, भगवान विष्णु के अवतार रूप की भूमिका में आत्मा (जीव) व परम आत्मा (परमात्मा) के संबंध का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। श्री राम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'आदर्श पुरुष', जो जीवन के समस्त पहलुओं में धर्म पर अडिग रहता है। उनका जीवन इस बात को प्रमाणित करता है कि कैसे हमें अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं पर कर्तव्य को प्राथमिकता देनी चाहिए। साथ ही, ऐसे निर्णय लेने चाहिए जो व्यक्तिगत कठिनाइयों की कीमत पर भी बृहत्तर लाभ पहुँचाते हों।
साध्वी जी ने बताया कि ‘ब्रह्मज्ञान’ पर आधारित श्री राम का ज्ञान-दर्शन लोगों को उनके वास्तविक, दिव्य स्वरूप को जानने व आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है। उनका जीवन इस बात का जीवंत उदाहरण है कि कैसे आत्म-बोध जीवन को करुणा, कर्तव्य व शांति की ओर अग्रसर कर साधकों को अहंकार की सीमाओं को पार करने व परम सत्य से जुड़ने के लिए प्रेरित करता है। भगवान राम का रावण के साथ युद्ध अच्छाई और बुराई के शाश्वत युद्ध का प्रतीक था और उनकी अयोध्या वापसी, धर्म की विजय व स्थापना का प्रतीक थी। इसी प्रकार ‘ब्रह्मज्ञान’ द्वारा व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार की यात्रा आरंभ कर आध्यात्मिक मुक्ति की ओर अग्रसर हो सकता है।

अंत मे, साध्वी जी ने कहा कि वर्तमान समय में, दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी ने लाखों लोगों को ‘ब्रह्मज्ञान’ से दीक्षित कर उनके जीवन को रूपांतरित कर दिखाया है। जिससे उन्हें अपने वास्तविक स्वरूप से जुड़ने व सार्वभौमिक एकता का अनुभव करने में सहयोग मिला। परम पूजनीय गुरुदेव ने मानवीय संकीर्णताओं के दायरों से ऊपर उठाकर आध्यात्मिकता को समस्त मानव जाति के लिए सुलभ बनाया।
इस भव्य कार्यक्रम को स्थानीय समाचार पत्रों व सोशल मीडिया इत्यादि पर विस्तृत कवरेजभी प्राप्त हुई। यह कथा भारत के प्राचीन ज्ञान व समकालीन जीवन के अंतर को समाप्त करने में सफल सिद्ध हुई। इससे भक्तों को व्यक्तिगत शांति प्राप्त करने और सामाजिक सद्भाव में योगदान देने हेतु ब्रह्मज्ञान द्वारा आंतरिक रूपांतरण व आध्यात्मिक जागृति के महत्व कोबखूबी समझा व स्वीकार किया।