इस सृष्टि को दिव्य शक्तियों ने आध्यात्मिकता द्वारा सुदृढ़ व रहने योग्य बनाया है, दिव्य शक्तियाँ संसार में मानव को भक्ति प्रदान कर इस कार्य हेतु प्रमुख भूमिका के रूप में चयन करती हैं। वास्तविक भक्ति को विस्मृत कर समाज में पाखंड, बेईमान, अत्याचार, पापाचार व अनेक समस्याओं का पसारा हो जाता है। वर्तमान समय में समाज अत्यंत वीभत्स परिवेश में है, जहाँ हर ओर अधार्मिकता पनप रही है। श्री राम राज्य में में प्रचलित न्याय और आदर्शवाद के सिद्धांत पूरी तरह से विलुप्त हो गए हैं।

दीर्घकाल से विलुप्त हुए राम राज्य को पुनः स्थापित करने हेतु, जो दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने परम पूजनीय सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के मार्गदर्शन में न्याय, समानता, सत्यता और त्याग के सिद्धांतों को जीवंत करने हेतु अनेक प्रयास किए हैं। रामराज्य कोई कथा या कल्पना नहीं है। यह त्रेतायुग का ऐतिहासिक सत्य व तथ्य है। सत्य और धर्म ही रामराज्य का आधार है।
श्री राम के जीवन चरित्र से समाज को पुनः जोड़ने हेतु, संस्थान ने पंजाब के जालंधर में आठ दिवसीय श्री राम कथा का आयोजन किया, यह कथा 30 सितंबर से 07 अक्टूबर तक प्रभु महिमा से समाज को तृप्त करती रही। कथा का शुभारम्भ श्री राम के पावन चरण कमलों के पूजन अर्चन से हुआ। सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्यों में दिव्य भजनों का गायन किया। कथाव्यास साध्वी गरिमा भारती जी ने श्री राम के जीवन काल के कई उदाहरणों को भक्तों के समक्ष रखा। साध्वी जी ने माता शबरी के प्रसंग को रखते हुए बताया कि वह एक आदिवासी महिला थीं और एक बार उनके गुरु ऋषि मतंग ने उन्हें बताया था कि भगवान राम उनकी कुटिया में आएंगे। प्रभु की प्रतीक्षा करते हुए उन्होंने अनेक वर्षों तक धैर्यपूर्वक वन मार्ग को साफ किया और श्री राम के लिए बेरों को एकत्र किया। एक सच्चे भक्त होने के नाते, उन्होंने अपने सतगुरु के निर्देशों का पूर्णरूपेण पालन किया और इसके बाद भगवान राम की कृपा से मुक्ति को प्राप्त किया। माँ शबरी का प्रसंग यही संदेश देता है कि एक शिष्य को पूर्ण सतगुरु की आज्ञाओं पर कभी भी संदेह नहीं करना चाहिए और उनकी आज्ञाओं का पालन करते हुए अपने जीवन का कल्याण करना चाहिए।

जैसे-जैसे कथा आगे बढ़ी साध्वी जी ने श्री राम के जीवन काल से एक और दिव्य लीला को प्रकट किया, जिसमें विभीषण के महत्वपूर्ण चरित्र व कार्यों की व्याख्या की गई। वे रावण के भाई थे, रावण जो एक महान विद्वान होने के उपरांत भी अहंकार से प्रेरित था और समाज को धर्म पथ पर बढ़ने से रोकता था। विभीषण जी ने रावण के इन सभी अत्याचारों के उपरांत भी श्री राम के संग सत्य और न्याय का मार्ग चुना। साध्वी जी ने बताया कि इसी तरह एक सच्चे भक्त को सांसारिक माया से प्रभावित नहीं होना चाहिए और धर्म मार्ग पर चलने के लिए दृढ़ संकल्पित रहना चाहिए। धर्म और पूर्ण गुरु के निर्देशों के पालन द्वारा ही एक समृद्ध राम राज्य स्थापित करना सम्भव है।