समकालीन समय में, नारी उत्थान की परिभाषा के संशोधन की आवश्यकता है। अपनी पहचान खोजने में लगी 21वीं सदी की महिला को सशक्तिकरण के आदर्श को जानना होगा। सशक्तिकरण का अर्थ मात्र पुरुष के समरूप कार्य करना ही नहीं है अपितु अपने भीतर निहित शक्ति को खोजना है। शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सशक्तिकरण के साथ महिलाओं के समग्र सशक्तिकरण हेतु आध्यात्मिक सशक्तिकरण की नितांत अनिवार्यता है।
स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था कि "यदि नारी सशक्त होगी, तो उनकी संतान श्रेष्ठ कार्यों द्वारा देश को विश्व के शिखर तक ले जाएंगी, देश में हर ओर संस्कृति, शक्ति और भक्ति जागृत होगी।" महिलाओं को शिक्षित करने का अर्थ मात्र उन्हें डिग्री पाठ्यक्रमों में योग्य बनाना नहीं है, बल्कि समय की आवश्यकता है कि उन्हें आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करते हुए वास्तविक पहचान से परिचित करवाया जाए। महिलाओं के सम्मान हेतु गौरवशाली संस्कृति का पुनरुत्थान आज भी संभव है, परन्तु शर्त यह है कि महिलाओं को आत्मिक स्तर पर जागृत होकर शुद्ध, चैतन्य स्वरूप से जुड़ना होगा।
दिव्य संदेशों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने 22 जून से 28 जून, 2019 तक असम सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा गुवाहाटी, असम में आयोजित कार्यक्रम में सात दिवसीय श्रीमद्देवी भागवत कथा का प्रस्तुतिकरण किया। दिव्य प्रांगण में लोग दिव्य कृपा से भीग गए। भक्ति भजन और प्रेरणादायक गीतों की श्रृंखला ने दर्शकों के विचारों को दिव्यता से स्पंदित किया और उन्हें सकारात्मक बदलाव की ओर निर्देशित किया।
कार्यक्रम की सूत्रधार सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथा व्यास साध्वी अदिति भारती जी ने बताया कि माँ दुर्गा ही सृष्टि निर्माण की मूल है। माँ देवी समयानुरूप विभिन्न भूमिकाओं को पूर्ण करने में सशक्त हैं। देवी एक नारी का आदर्श रूप हैं, जो नारियों को भीतर निहित अपार संभावनाओं को पहचानने का आह्वान करती हैं। राक्षस महिषासुर का वध करके, देवी दुर्गा ने न केवल महिलाओं की गरिमा की रक्षा की, बल्कि एक सशक्त नारी के आदर्श को रखा है। देवी दुर्गा का रूप नारी को दिव्य नेत्र जागरण का संदेश देता है, जिसके द्वारा नारी अपनी क्षमताओं से परिचित हो सकती है।
माँ शक्ति की उपासना देवी के वास्तविक स्वरूप को जानने और अनुभव करने की आवश्यकता पर बल देती है, वह शक्ति जो हमारे भीतर अपने प्रारंभिक रूप में विद्यमान है परन्तु निष्क्रिय पड़ी है। शास्त्रों में आत्मिक स्तर पर जागृत व सशक्त नारियाँ जैसे देवी अनुसूया, ब्रह्मवादिनी गार्गी और सावित्री आदि नारी के आदर्श रूप है। साथ ही मीरा बाई, लक्ष्मी बाई और रानी कर्णवती आदि नारियाँ वन्दनीय हैं जिन्होंने सामाजिक समस्याओं के निदान हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक और संचालक सर्व श्री आशुतोष महाराज जी कहते हैं कि "समय के आध्यात्मिक गुरु, नारी को बंधन के चक्र से मुक्त करने हेतु दो स्तरों पर कार्य करते हैं - एक समाज को वैदिक काल की नारियों की स्थिति के प्रति जागरूक करना और दूसरा नारीओं को स्वयं अपनी वास्तविक आत्म-योग्यता का एहसास होना। और दोनों को वास्तविक स्तर पर लाने हेतु आत्म-जागृति ही एकमात्र समाधान है।” आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाती है क्योंकि ब्रह्मज्ञान की ध्यान-साधना ही दिव्य ऊर्जा का बारहमासी स्रोत है।
कार्यक्रम ने अपने उद्देश्य को सफलतापूर्वक पूरा किया। व्यावहारिक विचारों के साथ लोगों को ईश्वर की शक्ति का एहसास कराया और उन्हें अपने जीवन में आध्यात्मिक यात्रा करने के लिए प्रेरित किया।