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एक शिष्य कई वर्षों से ध्यान में लीन था, एक दिवस उसके गुरुदेव उसके समीप आए और उसे नगर में हो रहे वार्षिक मेले में जाने की आज्ञा प्रदान की। शिष्य गुरुदेव की आज्ञा की पालना करते हुए मेले में पहुंचा गया, पर जैस ही उसने मेले में प्रवेश किया कि उसी समय एक व्यक्ति का पांव उसके पैर के ऊपर आ गया। शिष्य दर्द से कराह उठा, व्यक्ति ने शिष्य से अपनी भूल की क्षमा मांगी परन्तु शिष्य के भीतर क्रोध का तूफ़ान उमड़ गया। शिष्य जब आश्रम लौटा तो  उसने अनुभव किया कि इतने वर्षों के ध्यान के उपरांत भी वह अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं कर पाया। इस सत्य को जान शिष्य पुनः गहन ध्यान में लीन हो गया। अगले वर्ष शिष्य में पुनः अपने गुरुदेव से वार्षिक मेले में जाने की आज्ञा मांगी। इस बार भी शिष्य के साथ वही घटना दुबारा घटित हुई, परन्तु इस बार शिष्य के नेत्र क्रोध से लाल नहीं हुए अपितु उसके मुख पर स्नेह से भरी मुस्कान उभर गयी। आध्यात्मिकता के मार्ग पर शिष्य को सदैव अपनी कमियों को जान, उसे समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए। अपने विकारों पर विजय प्राप्त करने हेतु निरंतर ध्यान व गुरु के प्रति समर्पण और विश्वास ही साधक का संबल है।

Soulful Meditation Reemphasized in the Monthly Spiritual Congregation at Nurmahal, Punjab

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के मार्गदर्शन में ब्रह्मज्ञानी साधकों को दृढ़ता से भक्ति पथ पर अग्रसर करने हेतु दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 12 मई, 2019 को पंजाब के नूरमहल आश्रम में प्रेरणादायक आध्यात्मिक मासिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। ब्रह्मज्ञानी वेदपाठियों द्वारा मंत्र उच्चारण से सभा का आरम्भ हुआ। संस्थान के प्रशिक्षित संगीतकार शिष्यों ने विभिन्न मधुर भक्ति रचनाओं के गायन द्वारा वातावरण में भक्ति की आभा को प्रसारित किया। संस्थान के प्रचारकों द्वार आध्यात्मिक व प्रेरणादायक प्रवचनों ने शिष्यों में उत्साह का संचार किया।

साध्वी जी ने अध्यात्म और संसार दोनों ही क्षेत्रों में ध्यान द्वारा समग्र विकास के महत्व पर प्रकाश डाला। मानव में सकरात्मक परिवर्तन की शक्ति उसी के भीतर निहित है। इस अंतर्निहित शक्ति को जागृत करने हेतु सर्व श्री आशुतोष महाराज जी ने शिष्यों को ब्रह्मज्ञान की सनातन विधि प्रदान की है। ध्यान के निरंतर अभ्यास द्वारा शिष्य अपने विकारों को नियंत्रित कर सकता है। साधक को अपनी कमियों व विकारों के प्रति सचेत रहते हुए उसे समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि यही विकार उसकी शांति व उन्नति में बाधा उत्पन्न करते हैं। गुरु के मार्ग व आदर्शों पर दृढ़ता से बढ़ते हुए शिष्य अपने भीतर आध्यात्मिक ओज को प्राप्त करता है। 

Soulful Meditation Reemphasized in the Monthly Spiritual Congregation at Nurmahal, Punjab

जिस प्रकार हम मानव शरीर के लिए ऊर्जा हेतु भोजन को नियमित रूप से ग्रहण करते है, उसी प्रकार आत्मा के विकास हेतु नियमित ध्यान की आवश्यकता होती है। साध्वी जी ने विचारों में स्पष्ट किया कि शिष्य नियमित ध्यान द्वारा अपने भीतर सकारात्मक परिवर्तन को प्राप्त करें। सामूहिक प्रसाद भंडारे द्वारा सभा को विराम दिया गया।

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