क्या समोसे के साथ चटनी खाने से दुःख दूर हो जाएँगे? | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

क्या समोसे के साथ चटनी खाने से दुःख दूर हो जाएँगे?

प्रश्न- गुरू महाराज जी, आजकल मीडिया में ऐसे बहुत-से बाबा-गुरू छाए हुए हैं, जो न तो शास्त्र-ग्रंथों पर आधारित कथाएँ या प्रवचन करते हैं, न ही कोई आध्यात्मिक चर्चा। वे तो अपने भक्तों को कुछ ऐसे मंत्र या बेतुके सूत्र बताते हैं, जिनसे भक्तों की तिजौरियाँ भर जाएँ, दुःख-क्लेश खत्म हो जाएँ, नौकरी लग जाए आदि। क्या ये लोग सच में गुरू की उपाधि पाने के हकदार हैं? उत्तर- प्रमाणित शास्त्र-ग्रंथों ने गुरू की जो परिभाषा दी है, उसके अनुसार तो ये साधु-बाबा 'गुरू' कहलाने के बिल्कुल भी अधिकारी नहीं हैं। ये 'गुरू' नहीं, 'व्यापारी' हैं। और इनके व्यापार को बढ़ावा दे रहा है- मीडिया। जैसे जब कोई कंपनी नया प्रोडक्ट बाज़ार में उतारती है, तो मीडिया में खूब विज्ञापन देती है, ताकि अधिक-से-अधिक लोगों को आकर्षित कर सके। ठीक ऐसे ही आजकल के ये तथाकथित गुरु मीडिया का प्रयोग कर घर-घर तक पहुँच रहे हैं और अध्यात्म के नाम पर शुरू किया अपना कारोबार फैला रहे हैं। इनमें से कई तो ऐसे हैं, जिन्हें अध्यात्म का 'क ख ग ...' भी नहीं आता, बस बेतुकी बातें करके लोगों को ठग रहे हैं। कहते हैं कि आप समोसे के साथ फलां चटनी खाएँ, तो आपकी नौकरी लग जाएगी। ... आप जूता इस कंपनी का न पहनकर, इस कंपनी का पहनें, तो आपको बेटा हो जाएगा ... क्या कोरी बकवाद है! निरी मूर्खता है! ... और दुर्भाग्य की बात तो यह है कि अशिक्षित ही नहीं, बल्कि शिक्षित वर्ग भी आज उनकी इन ऊलजलूल बातों में फंसकर उनका भक्त बन रहा है। उनके चरणों में बैठकर श्रद्धा और विश्वास के पुष्प चढ़ाता है। आँख मूँद कर वही करता है, जो वे उससे करने को कहते हैं। इस कारण में गति क्या होती है, जानने के लिए पढ़िए हिन्दी मासिक पत्रिका का जनवरी 2013 अंक।
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