प्रश्न : गुरु महाराज जी, श्रीनिवास रामानुजन तो एक बहुत महान गणितज्ञ हुए हैं। पर किसी से मैंने सुना है कि वे अध्यात्म-प्रेमी भी थे। एक महान गणितज्ञ की अध्यात्म में रूचि होना-क्या यह विरोधाभास नहीं है? कृपया प्रकाश डालें।
उत्तर: निःसंदेह, श्रीनिवास रामानुजन भारत की धरा पर जन्मे एक महान गणितज्ञ थे। अपने 32 वर्ष के छोटे से जीवनकाल में, उनका इतना महान योगदान गणित को रहा कि आज लगभग एक शताब्दी बीतने के बाद भी गणित-प्रेमी खुले कंठ से उनकी प्रशंसा करती हैं।
... 7 साल की छोटी-सी आयु में ही उनके भीतर बैठा गणितज्ञ स्पष्ट दिखने लगा था। ग्यारह साल की उम्र तक तो उन्होंने इतना गणित पढ़ लिया था, जितना कॉलेज के विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है। ... इंग्लैंड के एक गणितज्ञ जी. एच. हार्डी तो रामानुजन के कार्य से ऐसे प्रभावित हुए कि उन्हें अपने साथ रिसर्च करने के लिए इंग्लैंड ही बुला लिया। कैम्ब्रिज में करीबन 5 सालों तक रामानुजन ने प्रो. हार्डी और प्रो. लिटलवुड के साथ कई रिसर्च पेपर लिखे।
... प्रो. हार्डी ने एक बार रामानुजन पर व्यंग्य कसा- 'अरे, तुम जैसा महान गणितज्ञ इतनी गूढ़ थियोरम्स और गहरे सूत्रों की खोज करने वाला, भला ईश्वर नामक बेतुकी चीज़ में कैसे फस सकता है?' रामानुजन ने बेहिचक उत्तर देते हुए कहा था- 'मैं ऐसे किसी समीकरण का कोई अस्तित्व नहीं समझता, जो ईश्वर के विचार को निरुपित न करे।'...
क्या बड़े-बड़े वैज्ञानिकों का ऐसा मानना कि ईश्वर नामक कोई सत्ता नहीं हैं, सच में सही है? जानने के लिए पढ़िए हिन्दी मासिक पत्रिका अखण्ड ज्ञान के अक्टूबर 2012 अंक में।