जातिवाद के संकीर्ण दायरे! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

जातिवाद के संकीर्ण दायरे!

प्रश्न: गुरु महाराज जी, हमारे शास्त्रों के अनुसार समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया है। परन्तु कुछ संत- महापुरुषों ने इस वर्गीकरण का विरोध किया है। आपका इस विषय में क्या मत है?

उत्तर- एक बार एक कट्टरपंथी ब्राह्मण हमारे पास आए। उन्होने हमसे कहा- 'इस समाज में व्यवस्था स्थापित करने के लिए ईश्वर ने  चार वर्णों की उत्पत्ति की। इसलिए सभी को इस वर्ण व्यवस्था का सम्मान करना चाहिए।' हमने उनसे पूछा- 'आप क्या सोचते हैं, किस आधार पर ईश्वर ने वर्ण व्यवस्था की रचना की?' उन्होंने तुरन्त एक श्लोक का उच्चारण कर दिया जिसका अर्थ है- ईश्वर के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य और पदों से शूद्र उत्पन्न हुए। इसलिए ब्राह्मण उत्कृष्टतम हैं और शूद्र निकृष्टतम।

... विचारणीय है, यदि ईश्वर के चरणों से उत्पत्ति होने के कारण कोई निकृष्ट हो जाता है, तो आप गंगा के विषय में क्या कहेंगे? हमारे शास्त्र कहते हैं-

जेहि चरनन ...

अर्थात नारायण के श्रीचरणों से गंगा की उत्पत्ति हुई। फिर इस गंगा को डिवॉन के देव, महादेव शंकर ने अपने शीश पर स्थान दिया। ऐसा क्यों किया उन्होंने? आपके अनुसार तो गंगा भी नारायण के चरणों से उत्पन्न होने के कारण शूद्र निम्न हैं।

... समाज में चार वर्णों की स्थापना इस सोच या आधार को लेकर कदापि नहीं की गई थी।

...फिर प्रश्न उठता है कि ये चतुर्वर्ण समाज में कैसे और क्यों आए? पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए मई  2013 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका ...

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