... आदिनाम का सुमिरन करने वाला व्यक्ति साक्षात ब्रह्मतत्त्व को प्राप्त होता है!
यह सृष्टि एक परम अद्भुत कृति है। कृति है, तो कृतिकार भी अवश्य है। वेदों अथवा आर्ष ग्रंथों में उसे 'ब्रह्म' कहा गया। ... आदि ब्रह्म ने संकल्प किया- मैं एक हूँ, बहुत हो जाता हूँ। ब्रह्म के इसी संकल्पित विचार को 'वाक्' कहा गया।
... इस वाक् अथवा शब्द ब्रह्म का स्वरूप कैसा था? ... जिस प्रकार समुद्र तरंग्शील होता है, उसी प्रकार वाक् या शब्द-ब्रह्म भी कंपित तरंगों के समान गतिशील हुआ करता है। ... यही आदि तरंग सृष्टि की रचनाकार बनी।
... अध्यात्म विज्ञान और भौतिक विज्ञान, दोनों का ही मत है कि इस मूल आदि कंपन से एक सूक्ष्मातिसूक्ष्म नाद प्रस्फुटित हुआ।
... वास्तव में यही नाद क्रमानुसार सृष्टि का सृजक बना। ब्रह्मनाद द्वारा ही सृष्टि की रचना हुई। किस प्रकार?
... ईश्वर के जितने भी व्यक्त नाम हैं, वे शब्द परक हैं। परन्तु यह आदिनाम अनुभूतिपरक है। ...
यह आदिनाम हमारे अस्तित्व में कहाँ विद्यमान है?
... गीता का स्पष्ट कथन है-
जो उस अव्यक्त अक्षर को जानता है, वही परम गति को प्राप्त करता है। उस अव्यक्त अक्षर को जानने का क्या उपाय है? जब आदिनाम का सतत सुमिरन किया जाता है, तो एक अनुपम वैज्ञानिक घटना घटती है। वो क्या है? इन सभी प्रश्नों का समाधान पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए मई 2013 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका ...