हमेशा मुस्कुराते रहे! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

हमेशा मुस्कुराते रहे!

हँसना और मुस्कुराना किसे अच्छा नहीं लगता? लेकिन फिर ऐसा क्यों होता है कि बचपन में जो मुस्कान एक दिन में लगभग ४०० बार हमारे होठों पर खेलती है, हमारे बड़े होते-होते वह इतनी घट जाती है कि मुश्किल से बस १५ बार ही हमारे चेहरे पर दिखाई देती है? कारण स्पष्ट ही है- हमारी परेशानियों भरी ज़िन्दगी ...जहाँ किसी भी क्षण कुछ भी ऐसा घट जाता है, जो हमारे मुख से ये मुरझाया सा स्वर उभारता है- 'हाय! आज का तो दिन ही खराब है! मेरा मूड आफ हो गया!' 

... कुछ घटनाएँ हमारे अच्छे -खासे हँसते-खेलते दिन को बेकार या खराब दिन में बदल जाती हैं। हमारा मन बेचैन हो जाता है। हमारी कार्यक्षमता कम हो जाती है। घूम-घूम कर वही वाकया याद आता रहता है और हम उदास व नीरस महसूस करने लगते हैं। इससे निबटा कैसे जाए?

सच कहें, तो ऐसा करना कोई मुश्किल कार्य नहीं है। ऐसा कहकर हम आपको बहला-फुसला नहीं रहे, बल्कि आपके संग कुछ बड़े काम के और कमाल के सूत्र साँझा करने जा रहे हैं, जिन्हें अपना कर आप चाहें तो बड़ी आसानी से अपने बुरे दिन को वापिस हँसता-खेलता बना सकते है… बल्कि उसे बुरा दिन बनने से ही रोक सकते हैं! जानना चाहेंगे वो सूत्र? जानने  के लिए पढ़िए हिन्दी मासिक पत्रिका अखण्ड ज्ञान का जून 2013 अंक।

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