अभी कुछ समय पहले, हमारे देश की सर्वोच्च न्यायालय ने एक अनपेक्षित फैसला सुनाया, जिस पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ सामने आईं। ...
... हम बात कर रहे हैं 'लिव-इन रिलेशनशिप' की- एक ऐसा कान्सेप्ट (धारणा) जिसे सरल- सपाट शब्दों में आप इस तरह परिभाषित कर सकते हैं- 'अविवाहित लड़के और लड़की का एक साथ होना, ठीक ऐसे जैसे एक विवाहित दम्पत्ति रहते हैं।'
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान की धारा इक्कीस का हवाला देते हुए कहा कि देश के प्रत्येक नागरिक को अपनी ज़िन्दगी जीने और निजी स्वतंत्रता का पूरा अधिकार है। इसलिए युवक और युवती बिना शादी किये भी अगर एक साथ रहते है, तो चाहे यह समाज की नज़रों में मान्य है या नहीं, लेकिन क़ानून की नज़रों में इसे अवैध या ज़ुर्म नहीं माना जा सकता। ...
... किसका कहना सही है और किसका गलत- आइए, आज एक खुले और निष्पक्ष मंच पर खड़े होकर इस बात का फैसला करते हैं। प्रस्तुत है, इस मुद्दे पर एक बहस! इसमें एक तरफ खड़ा है, इसका बढ़-चढ़कर समर्थन करने वाला आज का युवा वर्ग। दूसरी और, पैनल में मौजूद हैं, विवेकशील वर्ग का प्रतिनिधित्व करते- एक वरिष्ठ प्रचारक स्वामी, और एक जाने माने समाजशास्त्री।
... युवा- ... लिव-इन आपको एक सही जीवनसाथी चुनने का मौका देता है। ... लिव-इन आपकी ज़िन्दगी से जुड़े इस महत्त्वपूर्ण चुनाव में एक 'टेस्ट-ड्राइव' का रोल निभाता है। एक सुखद शादी-शुदा जीवन के लिए रिहर्सल का काम करता है।
समाज शास्त्री- रिहर्सल का काम तो करता है, लेकिन सुखद शादी-शुदा ज़िन्दगी के लिए नहीं! बल्कि आगे चलकर ...ब्रेक-अप के लिए।
युवा: ???
क्या सचमुच एक अच्छा रिश्ता और सुन्दर समाज चाहने के लिए लिव-इन का सिद्धान्त अपनाएँ? जानने के लिए पढ़िए हिन्दी मासिक पत्रिका अखण्ड ज्ञान का जून 2013 अंक।