आज एक गोपी ने श्रीकृष्ण को रंगे हाथ पकड़ लिया और ले आई यशोदा के पास। आते ही उसने कहा- 'लो संभालो अपने लल्ला को! देखिये यशोदा जी! हम आपका बहुत मान-सम्मान करती हैं। पर इसकी भी एक सीमा है। हम ग्वालिन हैं और दूध-दही-माखन बेचकर गुज़ारा करती हैं। पर अब रोज़-रोज़ दूध-माखन की बर्बादी हमसे बर्दाश्त नहीं होती है। आपका ये लाडला खुद तो खाता ही है; साथ ही मंडली बनाकर दूसरों को भी खिला देता है। केवल खाने की भी बात नहीं है। खाने-पीने के बाद हमारे माटी के बर्तनों को भी तोड़ जाता है। आज की ही बात सुन लो। आया था ये तुम्हारा नटखट लल्ला! माखन चुराते रंगे हाथों पकड़ा है इसे!'
... कान्हा- नहीं मैय्या, मैंने माखन नहीं चुराया।
मैय्या- झूठ बोलता है तू! क्या मानवता ऐसे ही लहूलुहान पड़ी रहेगी?
... मैया रूठ कर चली गई।
... पर यहाँ विचारणीय तथ्य यह है कि क्या भगवान श्रीकृष्ण ने सचमुच में चोरी की? जानने के लिए पूर्णतः पढ़िए हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका का अगस्त 2013 अंक।