क्या मानवता ऐसे ही लहूलुहान पड़ी रहेगी? | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

क्या मानवता ऐसे ही लहूलुहान पड़ी रहेगी?

३० ...२९ ... २८ ........४ ... ३… २… १… लाल बत्ती का सिग्नल खत्म हुआ। गाड़ियाँ, स्कूटर, ट्रक, साइकिल- सभी वाहन हार्न बजाते हुए चलने लगे। एक कार में चार दोस्त सवार थे- विवेक, मानव, मनसुख और कामना! चारों आपस में हँसते-हँसाते आफिस जा रहे थे। टाइम कम था और ट्रैफिक ज़्यादा। इसलिए उनकी कार के ड्राइवर ने अगली सड़क से टेक-आफ किया और कार को मेन हाई-वे पर हवा से बातें करने ही वाली थी कि अचानक विवेक ने कुछ देखा। देखते ही ज़ोर से चिल्लाया- 'रोको! जल्दी कार रोको!' बाकी तीनों दोस्तों ने एक आवाज़ में पूछा- 'पर क्यों?' 'अभी तुम्हें भी पता चल जाएगा, क्यों! ड्राइवर! जल्दी से गाड़ी पीछे लो!'- विवेक 

पीछे सड़क के बीचोंबीच एक रिक्शे वाला गिरा पड़ा था। उसका शरीर पूरी तरह खून से लथपथ था और उसका आधा शरीर रिक्शा के नीचे दबा था। 

विवेक- चलो, जल्दी गाड़ी से उतरो और इसे ले चलो।

मनसुख- कहाँ ले चलो?

मनसुख- अरे, क्या हो गया है तुम्हें? ८.४५ हो गए हैं। टाइम पर आफिस पहुँचना है या नहीं? इन चक्करों में पड़ गए तो लेट हो जाएँगे। पंच मशीन में लेट पंच होगा, तो बेकार में हाफ-डे लग जाएगा।

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मनसुख- ड्राइवर, चलो! कार को आगे बढ़ाओ।

(कार तो आगे बढ़ गई, लेकिन पीछे कुछ छूट गया! मौत से लड़ती एक ज़िन्दगी!)

अफसोस! आज ऐसी एक नहीं, कई जिन्दगियों को हममें से कितने ही लोग तड़पता पीछे छोड़ जाते हैं। विचार करके देखिए। 

... आखिर हमारे कदम क्यों आगे नहीं बढ़ते? क्यों हमारे हाथ दर्द से कराहते लोगों की मदद के लिए नहीं उठते? 

... इन सभी प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए और ये कि कैसे ये चार दोस्त एक व्यक्ति के ही चार पहलू हैं, पूर्णतः पढ़िए हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका का अगस्त 2013अंक।

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