अधिकांशतः एक साधारण व्यक्ति के दिवस का एक-तिहाई भाग निद्रा को समर्पित रहता है। यही कारण है कि वैज्ञानिकों के शोध-यंत्रों की दिशा हमारे इस निद्रा-प्रकरण की और भी घूमी।
... यह पुरुष स्वप्न लोक में कभी ऊँचाई की, तो कभी निचाई की अवस्थाओं से गुज़रता है। नाना रूपों का निर्माण करता है। माया की विभिन्न कृतियों के संग आमोद-प्रमोद करता है। कभी बंधु-बाँधवों के संग हँसता-खेलता है, तो कभी भयावह दृश्यों को देखकर रोता और डरता है। कुछ ऐसा ही है, हमारे स्वप्नों का संसार! दिन भर तो हम इंद्रधनुषी दृश्यों और अनुभवों के साक्षी होते ही हैं। परन्तु रात्रिकाल में, नेत्र मूंदने के बाद, यह रंग-बिरंगा संसार हमारी पलकों तले आ बसता है। इसके प्रति साक्षी-भाव भी ज्यों-का-त्यों बना रहता है। बंद पलकों की छाँव में बसे संसार को ही हम सपनों का संसार कहते हैं।
वास्तव में, ये स्वप्न क्या हैं? क्या ये हमारे मस्तिष्क की काल्पनिक उड़ान मात्र हैं? क्या ये हमारे मन के विचारों की छाया-प्रतिछाया हैं? या फिर हमारी देह की कोई रासायनिक प्रक्रिया के परिणाम हैं? यही नहीं, क्या ये केवल झूठे होते हैं या सच्चे भी होते हैं! यदि सपने सच्चे होते हैं, तो क्या वे हमें किसी भावी राह का संकेत देते हैं? सपने अच्छे भी होते हैं, बुरे भी! तो क्या कोई ऐसी विधा है, जिससे अपने सपनों को सार्थक और शुभ बनाया जा सके?... प्रश्न अनेक हैं। इन सभी का समाधान गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के मुखारबिंद वैज्ञानिक व आध्यात्मिक तथ्यों के द्वारा जानने के लिए पूर्णतः पढ़िए हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका का अगस्त 2013अंक।