शेरां वाली- जय माता दी! ज्योतां वाली- जय माता दी! पहाड़ा वाली- जय माता दी! ... ऐसे जयकारे सभी मंदिरों में गुंजायमान थे। चारों और नवरात्रों की धूम थी और सारा वातावरण भगवतीमय था। इसी सांस्कृतिक माहौल में दो मित्रों- प्रोफेसर नारायण (विज्ञान भक्त) और जगदीश प्रसाद ( माँ काली के अनन्य भक्त) की भेंट हुई। ... मिलते ही उनके मध्य चर्चा आरम्भ हो गई। तो आइए, हम भी उनकी इस आध्यात्मिक व वैज्ञानिक चर्चा से लाभ लेते हैं ...
जगदीश प्रसाद- ...
प्रो. नारायण- ... तुम सुनाओ, क्या चल रहा है?
जगदीश प्रसाद- बस! माता रानी की कृपा से अपनी गाड़ी भी ट्रैक पर चल रही है।
प्रो. नारायण( सिर पर हाथ रखते हुए)- तू नहीं बदला। ... चल, आज तो तू मुझे बता ही दे की तेरी काली माँ कौन है? कैसी है? ...
जगदीश प्रसाद- हाँ! हाँ! ... चल उस बैंच पर बैठते हैं। वहीं मैं तुझे माँ काली की उत्पत्ति- कथा सुनाऊँगा। ...इसी बहाने सत्संग भी हो जाएगा।
प्रो. नारायण (हँसते हुए)- सत्संग क्यों? क्यों न एक कान्फरेन्स करें माँ काली पर!
जगदीश प्रसाद-... बात उस समय की है, जब राक्षसों-दानवों का आतंक चरम सीमा पर पहुँच चुका था। ...तब सभी त्रस्त देवताओं ने दानवों से मुक्ति पाने के लिए माँ भगवती के समक्ष स्तुति की।
...
जगदीश प्रसाद- ... पुराणों में आता है कि माँ काली की उत्पत्ति दानवों के संहार के लिए हुई थी। ...उस समय शुम्भ-निशुम्भ दानवों के राजा थे। उनका 'रक्तबीज' नामक एक विश्वस्त, बलशाली और वरदानी सवाल था।
प्रो. नारायण(उत्सुकता से)- अच्छा, तो फिर रक्तबीज का क्या हुआ?
जगदीश प्रसाद- रक्तबीज भी मारा गया। ... देवी उसका सारा रक्त पी गईं।
... माँ रक्तबीज और अन्य राक्षसों का वध करने के बाद सबकुछ निगलने लगीं। ...
...
प्रो. नारायण- अरे यार! यह कहानी तो मुझे ब्रह्माण्ड के ब्लैक होल्स की कहानी लग रही है। ...
कैसे वैज्ञानिक भक्त नारायण ने ब्लैक होल्स की समानता माँ काली के साथ बैठाई? भौतिक विज्ञान की पहुँच किस हद तक अध्यात्म विज्ञान तक पहुँची? जानने के लिए पूर्णतः पढ़िए अक्टूबर माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान पत्रिका!