यह प्रयोग है १३वीं शताब्दी का, जिसे रोम के राजा फ्रेडरिक ने नवजात शिशुओं पर किया था। फ्रेडरिक ने अपने राज्य में पैदा हुए कुछ नवजात बच्चों को ऐसी परिस्थिति में रखने का आदेश दिया, जहाँ पर उनसे कोई भी बात नहीं कर सकता था। बच्चों की देखभाल के लिए दासियाँ तो थीं, पर वे न बच्चों से और न ही आपस में बात कर सकती थीं। बच्चों के आसपास के माहॉल में सिर्फ चुप्पी ही होती थी।. दरअसल ऐसा प्रयोग करके राजा यह जानना चाहता था कि इंसान की वास्तविक भाषा क्या है?
इस प्रयोग से मनुष्य की मूल भाषा तो सामने नहीं आई। पर जो परिणाम सामने आया, वह अति भयंकर था। जिन बच्चों को बिना बातचीत वाले माहौल में रखा गया था, वे हमेशा के लिए चुप हो गए यानी उनकी मृत्यु हो गई। अतः इस प्रयोग से यहीं निष्कर्ष निकला की मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त किए बिना नहीं रह सकता। उसके लिए अन्य मनुष्यों से संवाद या बातचीत करना उसकी मौलिक ज़रूरत है। या ऐसा कहें कि हम मानवों को ईश्वर ने एक अनमोल उपहार दिया है, वह है- एक-दूसरे से अपनी बात कहने और समझने की कला।
वर्तमान समय में तो, सफल जीवन के लिए बातचीत करने की कला को एक महत्त्वपूर्ण सूत्र के रूप में लिया गया है।
... जब भी हम किसी से बातचीत करते हैं, तो पहले ९० सैकेंड में ही हमारी संवाद-कुशलता का काफी हद तक पता चल जाता है क्योंकि इन ९० सैकेंड में ही हमारी परसनैलिटी, हमारी बॉडी लैंग्वेज़, बोलने की शैली, शब्द-ज्ञान आदि की परख कर ली जाती है।
क्या है बातचीत करने के वो महत्त्वपूर्ण सूत्र, जिनको ध्यान में रख हम अपने विचारों को सही तरीके से रख सकें, जानने के लिये पूर्णतः पढ़िए दिसंबर माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान पत्रिका...