मुरझाई कलियाँ! (बाल-मज़दूरी की तपिश में कुम्हलाता बचपन!) | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

मुरझाई कलियाँ! (बाल-मज़दूरी की तपिश में कुम्हलाता बचपन!)

सच... किस तरह बाल-मज़दूरी की समस्या बद से बदतर होती जा रही। बच्चे- जिन्हें राष्ट्र का भविष्य कहा जाता है- आज उनकी बेहद दारूंण स्थिति हो चुकी है। छोटे-छोटे बच्चों से मज़दूरी करवा कर उन्हें शोषित किया जाता है। इस गंभीर स्थिति में सुधार व बदलाव कैसे लाया जाए- इसी खोज में निकले हैं, बाल-मज़दूरों के करूण क्रंदन से व्यथित एक योगी पुरुष तथा उनके संग समाजशास्त्र के दो शोधकर्ता मित्र- अभिनव और अखिलेश।

... योगी पुरुष- यदि बाल-मज़दूरी को समाज से हटाना है, तो इसके लिए हमें सबसे पहले समस्या के मूल कारण तक पहुँचना होगा। कारण पहचान कर फिर उसे जड़ समेत समाज की भूमि पर से उखाड़ फेंकना होगा। ताकि, दोबारा यह रोग फिर कभी मानव समाज में न पनप सके।

अखिलेश- मैं समझता हूँ, बाल-मज़दूरी के मुख्य रूप से तीन कारण हैं- पहला ग़रीबी, दूसरा अशिक्षा, तीसरा बढ़ती जनसंख्या। ... शिक्षा के अभाव में इंसान अपनी रूढ़िवादी सोच के आधार पर ज़िंदगी के निर्णय लेता है। बेटे के लालच में, पर्याप्त साधन न होते हुए भी, अपने परिवार को बढ़ाता चला जाता है। परिणाम? ग़रीबी! उससे निपटने के लिए  फिर घर के छोटे-छोटे बच्चों से कमाने की अपेक्षा की जाती है। ... मज़दूरी के लिए मजबूर किया जाता है। इस तरह नन्ही-मासूम कलियों को पूरी तरह खिलने से पहले ही, मुरझाने को विवश कर दिया जाता है। उनसे उनका बचपन छीनकर उन्हें आमदनी का साधन बना दिया जाता है।...

अभिनव- लेकिन... परिवर्तन लाने के लिए अगर कदम उठाए भी जाएँ, तो किस दिशा में? ... अगर भारत की बात करें, तो बाल-मज़दूरी के लिए यहाँ कई कानून बनाए गए। जैसे- ... २००६ में संशोधित अधिनियम लाया गया।

अखिलेश- इसी तरह, शिक्षा द्वारा भी बाल-मज़दूरी को खत्म करने की काफी कोशिशें की गई हैं। प्रयास किया गया कि हर बच्चे तक शिक्षा पहुँचाई जाए। ...

योगी पुरुष- तो ये प्रयास स्थिति में सुधार लाने में कितने कारगर सिद्ध हुए हैं?

तीनों अपने चिंतन से किस निष्कर्ष तक पहुँचते हैं? इस चिंताजनक समस्या पर पूर्ण विराम लगाने का कौन सा रास्ता ढूँढते हैं? साथ ही साथ, उसे सफल बनाने हेतु अपनी भूमिका हर व्यक्ति कैसे निभाए, ये सब जानने के लिए पूर्णतः दिसंबर माह की  हिन्दी अखण्ड ज्ञान पत्रिका!

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