जिज्ञासा मनुष्य के स्वभाव का सहज अंग है। दो-तीन वर्ष का बालक आदि जिसने अभी ठीक से बोलना ही शुरू किया है, वह भी अपनी माँ से अनेक प्रश्न करता है। जैसे कि- 'माँ, इस खाली बाँस में फूँक मारने से आवाज़ क्यों आती है? मेरी छोटी सी यह कार स्टार्ट बटन दबाते ही तेज़ी से क्यों दौड़ पड़ती है? सूरज गोल क्यों हैं?... इत्यादि।' जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, इस प्रश्न बैंक में और भी ज़्यादा क्यों, कैसे और क्या जमा होते जाते हैं। इतिहास साक्षी है कि मनुष्य की इसी जिज्ञासा प्रवृत्ति ने उसे वनस्पति प्राणी जगत व ब्रह्माण्ड संबंधित अनेकानेक गुत्थियाँ सुलझाने की ओर अग्रसर किया।
परन्तु दुर्भाग्यवश, बहुत ही कम ऐसे लोग होते है जिनकी जिज्ञासा जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने के लिए होती है। इस सम्बन्ध में परम पूजनीय गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी ने एक बहुत ही गूढ़ बात कही- 'न्यूटन ने पेड़ की शाखा से गिरते हुए सेब को देखकर गुरुत्वाकर्षण के नियम की खोज की। हालाँकि यह खोज विज्ञान और समाज के लिए अत्यंत उपयोगी है। किंतु यदि वह उस बात पर विचार करता, जिसके द्वारा वह सेब पेड़ की शाखा से जुड़ा हुआ था, तो हो सकता है कि वह जीवन के श्रेष्ठतम नियम (ईश्वरीय रहस्य) की खोज कर लेता।'
अतः सर्वोत्तम जिज्ञासा है- स्वयं के विषय में जानने की! ...जब मनुष्य स्वयं को जानने के लिए आगे बढ़ता है, तो उसके सामने अनेक पहेलियाँ खड़ी हो जाती हैं। इन पहेलियों को सुलझाने का सबसे सरल व सुलभ माध्यम हैं- हमारे शास्त्र-ग्रंथ। इन शास्त्र-ग्रंथों में ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों और जिग्यासुओं के बीच हुए संवाद निहित हैं। जिग्यासु अध्यात्म विषयक प्रश्न पूछता है और महापुरुष उन प्रश्नों का समाधान देते हैं। ऐसी ही एक प्रश्नोतरी का सत्र महाभारत काल में भी हुआ था, यक्ष और युधिष्ठर के बीच। इन दोनों के मध्य हुआ संवाद मानव जीवन संबंधी विभिन्न महत्त्वपूर्ण पक्षों के उजागर करता है, जो कि अर्थपूर्ण व आनंदमय जीवन के लिये उत्तरदायी है। उन सभी बहुमूल्य शिक्षाओं को पूर्णतः ग्रहण करने के लिए पढ़िए अप्रैल माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका!