सूर्य अस्त होने को था।... पर जैसे-जैसे ऊपर आकाश में सूर्यदेव का प्रकाश मंद होता जा रहा था, वैसे- वैसे धरती पर मशहूर बाज़ार की दुकानों में रोशनी ज़ोर पकड़ रही थी।...
इसी बाज़ार के आकर्षण का केन्द्र था, दूसरी मंज़िल पर बना फोटो स्टूडियो। बाज़ार की अलग-अलग आवाज़ों के बीच उस स्टूडियो के मालिक को अचानक किसी के खाँसने की आवाज़ सुनाई दी।... एक बहुत बूढ़े बाबा उसी स्टूडियो की सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे थे।...
फोटोग्राफर ने भाग कर उन बाबा को अपने हाथों से थामा और धीरे-धीरे ऊपर चढ़ाकर स्टूडियो की कुर्सी पर लाकर बैठा दिया। बाबा ने थोड़ी साँस ली, फिर अपने फटे-पुराने कुर्ते की जेब से एक बहुत पुराना 5 रुपये का नोट निकालकर... ऐसे देखने लगे, जैसे कोई अपनी बची-खुची संपत्ति भी छिन जाने से पहले उसे आख़िरी बार नज़र भर देखता है। फिर उसे फोटोग्राफर के हाथ में थमाते हुए कहने लगे-'...क्या तुम इसे लेकर मेरी एक फोटो निकाल दोगे,बेटा?
...
...'फोटोग्राफर ने 5रुपये के नोट को अपनी दराज़ मे रख लिया और बाबा को कैमरे के सामने कुर्सी पर बैठा दिया।...
...फोटोग्राफर ने कैमरा बंद करते हुए कहा-'बाबा फोटो खिंच गई ।... इतना कह कर उनके हाथ में एक रसीद थमा दी। बाबा के चेहरे पर संतुष्टि का भाव था... कहने लगे-'अगर मैं ना आ पाऊँ, तो मेरे बेटे इसे ढूँढ़ते -ढूँढ़ते ज़रूर आएँगे।...तुम उन्हे दे देना।'...
अभी कुछ ही दिन बीते होंगे... तभी दो नवयुवक धड़ाधड़ सीढ़ियाँ चढ़ते हुए स्टूडियो में घुस आए और बोले-' अरे भाई, क्या फोटो तैयार हो गयी?'... फोटोग्राफर ने जैसे ही रसीद देखी, तो बूढ़े बाबा का चेहरा आँखो के सामने घूम गया। पहले रसीद को देखा फिर उन दोनों युवकों को। उनमें से एक का अभी नया-नया, ताज़ा-ताज़ा मुंडन हुआ था...
तो क्या बूढ़े बाबा सचमुच नही रहे और उनके बेटों को अपने बूढ़े बाप की फोटो से इतना लगाव क्यों था? ... जानने के लिए पढ़िए मासिक पत्रिका अखण्ड ज्ञान का आगामी मई अंक।