प्रिय माताओं-पिताओं! आज आप बहुत चिंतित हैं। किसलिए? यही सोचकर कि हम अपने बच्चों को-
कितना बैंक बैलेंस दे पाएँगे?
कैसे रिश्ते दे सकेंगे?
कैसा भविष्य उनके लिए निर्धारित करेंगे?
कैसा समाज उन्हें देंगे?
कैसा वातावरण, कैसी प्रकृति उनके लिए छोड़ेंगे?
कितनी सारी चिंताएं हैं न हमें?
पर क्या कभी यह चिंता भी की है कि हम अपने बच्चों के रूप में-
भविष्य को क्या सौंपेंगे?
भावी समाज को कैसे नागरिक देंगे?
प्रकृति को उसके रक्षक देंगे या भक्षक देंगे?
राष्ट्र को कैसे वासी देंगे?
मानव-संस्कृति को क्या धरोहर देंगे?
दरअसल, परवरिश का दायित्व अपने बच्चों के लिए सिर्फ 'अधिकार' जुटाना नहीं है। बच्चों को उनके 'कर्त्तव्य' सिखाना भी इसका अंग है। बच्चों के लिए श्रेष्ठ वातावरण बनाना ही नहीं; वातावरण को श्रेष्ठ बच्चे सौंपना भी ज़रूरी है। अपनी संतान को एक वृक्ष की तरह पालें, उसे सभी प्राकृतिक अनुदान उपलब्ध कराएँ। ताकि वह भविष्य में प्रकृति को फूल-फूल-बीज और सुगंध लौटा सके। यह बागवानी किस प्रकार होनी चाहिए? प्रस्तुत है, परवरिश के कुछ पक्ष…
बच्चे 'श्रवण' से ज़्यादा 'अनुसरण' करते हैं
आज अक्सर माता-पिता शिकायत करते हैं कि उनके बच्चों में शिष्टाचार, विनम्रता आदि के गुण नहीं हैं। साधारण शब्दों में कहें, तो उन्हें बात करने की तमीज नहीं है। … ऐसी स्थिति में आप ज़रा दृष्टि घुमाकर अपने पति/पत्नी की ओर देखिए। देखिये कि कहीं आप दोनों में से किसी का व्यवहार या बोलने का तरीका भी वैसा ही तो नहीं? क्योंकि बच्चे माता-पिता के ब्लू-प्रिंट होते हैं। … वे जैसे माता-पिता में देखते हैं, वैसे ही स्वंय के व्यक्तित्व में छाप लेते हैं। …
ऐसा माना जाता है कि जिन बच्चों को अधिक लाड़-प्यार से पाला जाता है, वे घर में तो शेर होते हैं; परन्तु बाहर भीगी-बिल्ली जैसे व्यक्तित्व के बन जाते हैं। …
… इसलिए यदि आप अपने बच्चों को अत्यधिक लाड़-प्यार से पालते हैं, तो आप उनका जीवन खतरे में डाल रहे हैं। … तो ऐसे में बच्चों के पालन-पोषण में संतुलन कैसे अपनाएँ? यह सब जानने के लिए पढ़िए पूर्णतः लेख जून माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका में!