तुम्हारे गुरु का ओहदा क्या है? -लू, चीन
ऐसा कहा जाता है कि कन्फ्यूशियस की शरण में बहुत से शिष्य आए। पर जूमा चेन (चीनी इतिहासकार) के अनुसार,कन्फ्यूशियस ने एक बार कहा था- 'बेशक मेरे पास बहुत से लोग आए, मेरे शिष्य बनने के लिए। लेकिन, उन हज़ारों में से बस मुट्ठी भर ही ऐसे थे, जिन्हें सचमुच मैं अपना शिष्य कह सकता हूँ। क्योंकि केवल उन्होंने मेरे उपदेशों को वैसे ही लिया, जैसे मैं उन्हें देना चाहता था। मेरे आदर्शों को वैसे ही जिया, जैसे मैं उन्हें जीते देखना चाहता था।'
अहोभाग्य उन शिष्यों का, जिनके शिष्यत्व पर गुरु सफलता की मुहर लगा दें। जिन्हें गुरु अपना बना लें और जो सचमुच अपने गुरु के बन जाएँ। ऐसे ही शिष्यों में से एक था- ज़िगांग। एक बार ड्यूक चिंग ने ज़िगांग से पूछा- 'तुम अपने गुरु को श्रेष्ठता की किस श्रेणी में रखना चाहोगे? उन्हें क्या उपमा देना पसंद करोगे? अगर तुमसे कोई पूछे कि तुम्हारी नज़रों में तुम्हारे गुरु का क्या पद है, उनका क्या स्थान है, तो तुम्हारा क्या उत्तर होगा?'
गुरु की श्रेष्ठता को बता पाना !! उन्हें किसी उपमा से नवाज़ देना!! उनके ओहदे को परिभाषित करना!! क्या आसान है इन सवालों के जवाब दे पाना? आसान या मुश्किल का प्रश्न तो तब उठता, जब यह संभव होता। पूरी सृष्टि भी इन सवालों को हल करने में जुट जाय, तो भी यह कार्य असंभव ही रहेगा।
ज़िगांग की हालत भी ऐसी ही थी। कैसे अपने गुरु की अनंतता को शब्दों के दायरे में बाँधता? लेकिन, शिष्य को अपने गुरु की महिमा बखान करने का अवसर मिले और वो चूक जाए... यह भी कैसे संभव हो सकता है? इसलिए ज़िगांग ने असंभव को कह सकने का यथा-संभव प्रयास किया। बोला- 'जब से मैंने आँखें खोली हैं, तब से लेकर अब तक इस विशाल आसमान को अपने ऊपर देखते आया हूँ। लेकिन, आज तक इसकी ऊँचाई नहीं जान पाया। जिस दिन से अपने पैरों पर चलना सीखा है, उस दिन से लेकर आज तक मैं इस धरती पर हज़ारों कदम चला हूँ। पर आज तक इस धरती की गहराई नहीं जान सका। ड्यूक, ये धरती और ये आकाश तो फिर भी ससीम हैं। तो भी मैं इनकी गहराई और ऊँचाई नहीं माप सका।
फिर मेरे गुरु, वे तो असीम हैं। ऊनि ऊँचाई और गहराई नाप सकना मेरे लिए कैसे संभव हो सकता है? …
ड्यूक, अगर सचमुच तुम मेरे गुरु की श्रेष्ठता को जानना चाहते हो, तो इसका एक ही मार्ग है। …
क्या है वो मार्ग? चीन, जापान और यूनान के परदेसी संतों के ह्रदय में गुरु भक्ति की गूँज को पूर्णतः सुनने के लिए पढ़िए इस जुलाई माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका!