क्या बहन के कामना करने से भाई आयुष्मान हो जाता है? | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

क्या बहन के कामना करने से भाई आयुष्मान हो जाता है?

भारतीय संस्कृति की अद्वितीयता ही है यह! एक धागे के बल पर रक्षा का वचन जीत लेना! एक मंगल- सूत्र की ताकत पर आजीवन सम्बन्ध-बंधन में बँध जाना.... इन्हीं संस्कारों का सबसे प्रखर रूप देखने को मिलता है- रक्षा- बंधन के त्यौहार में! सूर्य-चन्द्राधारित भारतीय पंचांग के अनुसार 'श्रावण' महीने की पूर्णमासी को यह पर्व सकल भारतवर्ष में मनाया जाता है, विशेषकर उत्तर व दक्षिण भारत में।  इसलिए इसे 'राखी पूर्णिमा' या 'श्रावण पूर्णिमा' भी कह देते हैं।

हर प्रांत में इसका परम्परागत स्वरूप लगभग एक जैसा  ही है।  बहन अपने सगे या ममेरे-चचेरे-फुफेरे-मौसेरे या धर्म भाई की कलाई पर रक्षा-सूत्र (राखी) बाँधती है तथा उसके स्वरूप आयुष्य की शुभकामना करती है। इसके स्थान पर भाई अपनी बहन को आजीवन रक्षित करने का वचन देता है। अनुपम पवित्रता और शुद्ध भावनाओं का अद्भुत संगम है यह पर्व,  जो विश्व के समक्ष 'भाई-बहन' के पावनतम सम्बन्ध को उजागर करता है।

परन्तु पाठकगणों! विचारणीय है, हमारे ऋषियों या अवतारी सत्ताओं द्वारा स्थापित यह पर्व क्या केवल इतनी ही पहुँच रखता होगा? क्या एक बहन अपने भाई के लिए स्वास्थ्य या आयुष्य ही माँग सकती है? इससे उच्च कुछ नहीं? क्या एक भाई अपनी बहन शील और सम्मान के रक्षण से बँधा है? क्या इससे उच्च भी उसका कोई दायित्व है? यदि एक आधुनिक विदेशी हमारे इस पर्व पर अन्वेषण-दृष्टि डाले, तो निःसन्देह  उसमें ये प्रश्न उठेंगे ही उठेंगे- क्या केवल बहन की कामना या मनोभाव से भाई स्वस्थ और आयुष्मान हो जाता है? क्या कलाई पर रक्षा-बंधन बँधवाने वाले भाई अस्वस्थ या अकाल मृत्यु के शिकार नहीं होते? क्या रक्षा-सूत्र बाँधने  बहनों के सम्मान और शील पर कभी दाग नहीं लगा है? एक  साधारण इंसान ही तो है भाई! वह हर समय, हर स्थान पर, साये की तरह बहन के साथ चल भी तो नहीं पाता! फिर रक्षा-वचन पूर्ण रूप से कैसे निभा सकता है?

क्रांतिकारी प्रश्न हैं ये! हो सकता है, आपके ये खंडनकारी और भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले लगें। पर इन प्रश्नों को बुनकर 'अखण्ड ज्ञान' का मकसद 'खंडन'  नहीं 'मंडन' करना है।  पर्व में निहित उच्च सत्य और तथ्य को उजागर करना है।  केवल परम्पराओं का वहन करना हम भारतीयों का ध्येय नहीं हो सकता।  परम्पराओं में जो महान आदर्श हैं, उन पर चलना हमारी पहचान है।

रक्षा-बंधन में निहित ये महान आदर्श क्या हो सकते हैं? ऊपर उठाए गए प्रश्नों के सटीक उत्तर जानने के लिए पढ़िए अगस्त माह की मासिक हिन्दी अखण्ड ज्ञान पत्रिका!

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