मैं! मैं! मैं! The Journey from 'i' to 'I' | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

मैं! मैं! मैं! The Journey from 'i' to 'I'

… एक इंसान अपनी यात्रा 'मैं' से शुरू करता है।  'मैं' में ही जीता है, पलता है और बढ़ता है।  मैं, मेरा, मुझसे … इन्हीं दिशाओं को पकड़कर आगे चलता है।  'मैं' के कारण ही वह पल-पल मरता है और मारता है। ऐसे ही एक इंसान की 'मैं' यात्रा ग्रीक दर्शन हमारे सामने रखता है।  इस इंसान का नाम था- नार्सिसस। लेकिन इसके विपरीत भारतीय दर्शन भी एक अद्भुत यात्रा उजागर करता है, जो क्षुद्र अहंकार 'मैं' से शुरू होकर विराटतम 'मैं' में प्रवेश कर जाती है।  अखण्ड -ज्ञान इस लेख द्वारा आपको दोनों ही यात्राओं का यात्री बना रही है। तो चलें? …

नार्सिसस अपने भरपूर यौवन में था।  असाधारण रूप से सुन्दर, मनोहर, गठीला नौजवान! … साक्षात कामदेव का साकार अवतार था- नार्सिसस!

एक बार वह यात्रा पर निकला। वन की डगर थी … वह मतवाले डग भरने लगा।  उन्हीं पर्वतमालाओं में पर्वत की देवी रहती थी, जिसे ग्रीक दर्शन में 'एको' कहा जाता है।  एको की दृष्टि नार्सिसस पर पड़ी। वह मंत्रमुग्ध हो उठी।  … अविलम्ब नार्सिसस के सामने उसने प्रेम-प्रस्ताव रख दिया।

उधर से नार्सिसस की क्या प्रतिक्रिया हुई? वह ज़ोर से अट्टहास कर उठा।  … व्यंग्यपूर्ण हँसी में साफ़ प्रस्ताव का ठुकराव था।  पर एको का ह्रदय विवश था।  इसलिए उसन पुनः कोशिश की, याचना की, मिन्नत की। … लेकिन बड़ी निर्दयता से उसने एको को धक्का दे दिया और बेपरवाह क़दमों से आगे बढ़ गया।

पाठकगणों! यही अहंकार का स्वभाव हुआ करता है। वह अहंकारी को उल्टा चश्मा पहनाता है। …

आज के मनोवैज्ञानिकों के अनुसार नार्सिसस जैसे व्यक्ति अपने लिए दो ही प्रकार के व्यवहार निश्चित करते हैं।  …

आज के डिजिटल विद्वानों ने एक नार्सिसिस्ट की बड़ी गज़ब परिभाषा दी। वो  क्या हैं? आगे एको क्या नार्सिसस को मना पाई?  …

क्या 'मैं, मैं, मैं' करने वाला जीव 'मैं- रहित' ईश्वर से मिल सकता है? इन सभी प्रश्नों का हल जानने के लिए पढ़िए अक्टूबर माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका!

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