एक बिज़नेस टाइकून (बहुत बड़े उद्योगपति) ने एक शानदार पार्टी आयोजित की। पार्टी-हाल का हर कोना स्वर्ग को भी मात दे, इस बखूबी अंदाज़ से सजाया गया था।... उस पार्टी में उस राज्य की ही नहीं, देश की ही नहीं, विदेशों की भी दिग्गज हस्तियाँ मौजूद थीं।...
पर इस पार्टी हाल के एक कोने में लगी एक टेबल पर मास्टर शंकर बैठे थे, जो वहाँ उपस्थित सभी लोगों से कुछ अलग थे। सादा लिबास! चेहरे पर शांति! होठों पर मुस्कान! उम्र भी कुछ 50-60 के बीच की होगी।...
वे वहाँ थे ही नहीं। उनका मन 28 साल पहले की दुनिया की सैर कर रहा था। उनके ह्रदय- पटल घूम रहे थे वे द्श्य, जब वे उस राज्य के सबसे नामी-गिरामी स्कूल ' अभ्युदय' में हिंदी साहित्य के शिक्षक थे। आज का यह बिज़नेस टाइकून मुकेश पात्रा उस समय उनकी कक्षा का एक छात्र होता था।
'अभ्युदय' में दाखिला उन्हीं बच्चों को मिलता था, जो बहुत मेधावी व गुणी होते थे। लेकिन मुकेश इस नियम का अपवाद था। उसका दाखिला उसकी काबलियत के आधार पर नहीं, बल्कि उसके पिता के पैसों और ओहदे की ताकत पर हुआ था। इसी बात का मुकेश को घमंड था और शंकर जी को दु:ख।...
एक दिन, हिन्दी भाषा के सम्मान में बहुत बड़ी प्रतियोगिता रखी गई।... सभी ने जोरों-शोरों से तैयारी आरम्भ कर दी।...मुकेश भी इस पद को पाने के लिए लालायित हो उठा। ... शंकर जी ने कहा-' सबसे होनहार विद्यार्थी ही इस पद को पा सकता है। यह पद किसी कीमत पर न बेचा जाएगा और न किसी ओहदे के डर से किसी अयोग्य को दिया जाएगा।'
बस, इस दिन के बाद तो मुकेश के जीवन में कायाकल्प देखा गया।... शंकर जी जब भी राउंड पर निकलते, तो मुकेश को पढ़ता हुआ पाते।...फाइनल में केवल तीन प्रतियोगिओं का चुनाव होना था। मुकेश चौथे स्थान पर था। शंकर जी को लगा- यदि मुकेश इस प्रतियोगिता को नहीं जीत पाया तो फिर से पुराना वाला मुकेश बन जाएगा। यही सोच कर शंकर जी ने मुकेश के अंक बढाकर उसे भी तीसरा स्थान दे दिया...
फाइनल प्रतियोगिता का दिन... मंच पर खड़े थे-चार प्रतियोगी। शंकर जी ने एक-एक करके प्रश्न पूछने शुरू किए।...मुकेश कुछ ज्यादा ही चुस्ती से हर प्रश्न का उत्तर दे रहा था। शंकर जी को लगा कि कहीं इसने कोई छल तो नहीं किया। उन्हें एक तरकीब सूझी और उन्होंने वह प्रश्न पूछा, जो प्रश्नपत्र में था ही नहीं। उनका अनुमान सही निकला। इस बार मुकेश के होंठ सिले रहे। एक अन्य प्रतियोगी ने सही उत्तर देकर पद हासिल कर लिया।
शंकर जी पर इस घटना का इतना गहरा आघात लगा और उन्होंने नौकरी छोड़ दी।...
क्या मुकेश को इससे कोई सबक मिला? शंकर जी को उनके उसूलों ने क्या दिया?
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