साधना करनी है,करेंगे ही! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

साधना करनी है,करेंगे ही!

प्रिय साधकों!

एक बार गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी से किसी ने कहा था- 'महाराज जी, साधना करने का न हमें समय मिलता है, न उसमें हमारा मन लगता है।' उत्तरस्वरूप श्री महाराज जी ने ये पंक्तियाँ कहीं-
ऐसा कहने से काम नहीं चलने वाला।
साधना के लिए निश्चयात्मक बुद्धि बनानी है।...
ब्रह्मज्ञान की दीक्षा देकर श्री महाराज जी ने हमारे भीतर 'साध्य' या 'ध्येय' भी प्रकट कर दिया है। ... ध्यान-साधना करने के लिए पूरा मंच तैयार है। फिर इंतज़ार किस बात का? आलस्य कैसा? ...

महापुरुष कहते हैं- ततु गिआनु लाई धिआनु दृष्टि समेटिआ अर्थात् भृकुटि में दृष्टि को समेटने या एकाग्र करने से ही तत्वज्ञान पर आधारित 'ध्यान' लगता है। इस दौरान नाम का सुमिरन करते रहना भी ज़रूरी है। देखा जाए तो, इन दोनों क्रियाओं को करना बहुत सहज है। पर अगर 'मन' बीच में दखल न देता तो! ... बहुत से साधक किसी हारे हुए योद्धा की तरह कहते हैं- 'ये मन ही नहीं टिकता। क्या करें?'
...हमारे जीवन का अनुभव बताता है कि संसार की पाठशाला से भी सिर्फ एक ही शिक्षा-धुन सुनाई देती है- अभ्यास! अभ्यास! अभ्यास! इस क्षेत्र के धुरंधरों का भी यहीं अनुभव रहा और उन्होंने यही प्रेरणा दी। थॉमस एडिसन, जिनके सिर पर करीब २००० आविष्कारों का सेहरा है, ने कहा था- उपलब्धियाँ कभी भी आकस्मिक घटी घटनाओं के तोहफे नहीं होती हैं। किसी भी सफल इंसान के निर्माण में १% प्रेरणा और ९९% पसीना काम करता है।...

सोचने की बात है, जब सांसारिक विद्याओं के लिए सैकड़ों-हज़ारों घंटों का अभ्यास करना ज़रूरी होता है, तो ब्रह्माण्ड की सबसे रहस्यमयी व श्रेष्ठ विद्या-' ब्रह्मविद्या' या 'ब्रह्मज्ञान' में महारथ हासिल करने के लिये क्या अभ्यास आवश्यक नहीं होगा? ...

ब्रह्मज्ञान की यह साधना किस प्रकार करनी है? कैसे आसन पर और किस मुद्रा में करनी है? ध्यान में एकाग्रता कैसे लानी है? ध्यान की अवधि और अभ्यास कैसे बढ़ाना है? ...

इस ध्यान शिविर में इन पर्श्नों के समाधान हेतु    पढ़िये नवम्बर माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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