क्यों बँट गया परिवार? | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

क्यों बँट गया परिवार?

आज है अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस! टीचर ने सब बच्चों से अपना फैमिली-ट्री बनाकर लाने को कहा था। सातवीं कक्षा के दो दोस्त रिंकु और निखिल भी तैयार थे अपने-अपने फैमिली ट्री के साथ। पर दोनों के फैमिली-ट्री में काफी अंतर था। रिंकु का फैमिली-ट्री एक बड़े से चार्ट पेपर पर भी समा नहीं पा रहा था। वहीं निखिल का फैमिली-ट्री एक छोटी सी ए-४ शीट पर ही आसानी से फिट हो गया था।

पहले मास्टर रिंकु के बड़े से परिवार से मिलते हैं... बाप रे बाप! इतना बड़ा परिवार! आप चाहें तो इस परिवार में से क्रिकेट मैच की दोनों टीम बना सकते हैं। ...

अब देखते है, निखिल के फैमिली-ट्री को। इसमें कोई चाचा-ताया-दादा-दादी नहीं है। बस निखिल का छोटा-सा एकल परिवार है।

टन...टन...टन... लंच ब्रेक!

 निखिल (टिफिन खोलते हुए)- तुझे पता है, कल मेरे बड़े भाई की जेब से क्या निकला?... सिगरेट! जब माँ वाशिंग मशीन में उसकी शर्ट डाल रही थीं, तब! मेरी माँ को तो ४४० वोल्ट का झटका ही लग गया!...

रिंकु- अगर तेरा भाई मेरे घर में रहता होता न, तो उसे कभी यह आदत नहीं लग सकती थी। पहले ही बार में उसकी चोरी पकड़ी जाती। इतने सारे सी.सी.टी.वी. कैमरे जो लगे हैं मेरे घर में!

निखिल- सी.सी.टी.वी. कैमरे?

रिंकु- हाँ, वो भी अलग-अलग वैराईटी के! सबसे पहले माँ की कड़ी नज़र वाला कैमरा! फिर आता है, मेरी शक्की बुआ की तेज़ नाक वाला सैन्सर। ...आगे एक मेगा-चैक-पोस्ट तैयार खड़ा मिलेगा। मेरे दादा-दादी। ...इसलिए बहुत मुश्किल है कि हमारे घर में कोई तीन महीने से सिगरेट पी रहा हो और किसी को खबर तक न हो।

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निखिल- वाह यार! तुम्हारा घर बढ़िया है- घर में ही ख़ुफिया एजेन्सी है और घर में ही कोर्ट भी! केस सुलझाने की अच्छी-खासी व्यवस्था है।

रिंकु- हाँ... लेकिन कभी-कभी मुझे बहुत गुस्सा आता है। इतने सारे नियम और कानून। ऐसा लगता है कि हर समय इतने सारे लोग आपके सिर पर चौकीदारी करने के लिए बैठे हैं।

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संयुक्त बनाम एकल परिवार! इन दोनों पक्षों में से कौनसा पक्ष अधिक वज़न रखता है। ये सब पूर्णत: जानने के लिए पढ़िये दिसम्बर'14 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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