क्या आप सूझवान हैं? | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

क्या आप सूझवान हैं?

एक आधुनिक सोसाइटी मं सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा था।  कार्यक्रम में भारतीय संस्कृति का आधार- अध्यात्म का पक्ष रखने के लिए कमेटी के सभी सदस्यों ने एक विख्यात अध्यात्मविद् को आमंत्रित किया हुआ था।  उनका परिचय देते हुए, आयोजक महोदय ने सभी लोगों से अनुरोध किया कि वे अध्यात्म से सम्बन्धित अपनी जिज्ञासाएँ तथा विचार उनके सामने रखें।  तब एक सज्जन उठे और प्रश्न रखा- 'स्वामी जी, हममें से बहुत से लोगों को ऐसा लगता है कि हमारे ग्रंथों आदि की बातें बेहद जटिल हैं।  हमें कहाँ ये सब बातें समझ आने वाली हैं…।'

स्वामी जी (मुस्कुराते हुए)- आपको यदि ऐसा लगता है, तो आज मैं उन्हीं गूढ़ बातों को बहुत सरल शैली में समझाने का प्रयास करूँगा। चलिए, शुरुआत करते हैं एक चेतावनी से…

व्यक्ति क- चेतावनी?

स्वामी जी- हाँ! जैसे कॉलेज, ऑफिस आदि में आप कोई गलत कार्य न करें, … इसके लिए आपको सतर्क किया जाता है।  यदि तब भी आप अपनी भूल नहीं सुधारते, तो आपको सजा मिलती है।

ठीक इसी तरह, अपने इस अनमोल मानव जीवन को व्यर्थ गंवाने का हम अपराध न कर बैठें- इसके लिए ग्रन्थ हमें सतर्क करते हैं, जिन्हें आप अध्यात्म की शब्दावली (Rule Book) या संविधान (Constitution) भी कह सकते हैं। उनमें से एक चेतावनी मैं आपको बताता हूँ…

… जो लोग अपनी आत्मा की हत्या करते हैं, उन्हें मृत्योपरांत घोर कालिमा वाले असुरों के लोक समान नर्क में जाना पड़ता है।

व्यक्ति ख- यह तो बिना वजह डराने वाली बात हो गई! ...

स्वामी जी- …

व्यक्ति ख- आपके कहने का मतलब है कि हमने अपनी आत्मा की हत्या की है?

स्वामी जी- अध्यात्म की दृष्टि से देखे तो, हाँ! …

व्यक्ति ख- आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?

स्वामी जी- मैं नहीं कह रहा…बल्कि इस बात को धार्मिक ग्रन्थ कहते हैं। 

अविद्यादोषेण …

अज्ञानता के कारण…

व्यक्ति ग- अज्ञानता से आपका मतलब?

स्वामी जी- मतलब कि मनुष्य होते हुए भी पशुवत् जीवन जीना!

व्यक्ति ग- स्वामी जी, आपने  पशुओं की श्रेणी में ला खड़ा किया!

स्वामी जी- बात कड़वी ज़रूर है, मगर बिल्कुल सत्य है। आप कहें तो मैं अभी इस बात को सिद्ध कर देता हूँ। 

स्वामी जी ने इस बात को कैसे सत्य प्रमाणित किया?

…एक व्यक्ति के पूछने पर कि इतनी बड़ी ज़िन्दगी है, फिर यह आत्मा- परमात्मा की बातों के लिए इतनी जल्दबाज़ी क्यों? स्वामी जी ने क्या समाधान दिया?

… क्या ईश्वर को पाने के लिए घर-बार छोड़कर तपस्या करनी पड़ेगी? …

क्या ईश्वर को देख लेने के अन्य किसी स्तर पर भी कोई फायदा होता है?…

 ऐसे अनेकानेक सामान्य जन के मन में उठते प्रश्नों की स्वामी जी ने कैसे जिज्ञासा शांत की,  पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए मार्च माह, २०१५ की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका…

Need to read such articles? Subscribe Today