मन रे! तू काहे न धरे धीरे? | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

मन रे! तू काहे न धरे धीरे?

क्या आप जानते हैं?

१. थॉमस कारलाईल ने १८३७ में, कई सालों की कड़ी मेहनत के बाद एक ग्रंथ की रचना की, जो उनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है- 'फ्रांस की क्रांति का इतिहास'। परन्तु उनके एक दोस्त, जॉन स्टुअर्ट के नौकर की लापरवाही की वजह से उस पूरे ग्रंथ को आग लग गई। कोई और होता तो शयद वह न कर पाता, जो कारलाईल ने पूरे ग्रंथ को दोबारा से लिखा और साथ ही साथ उसमें दो नए खण्ड और जोड़ दिए।

२. अमरीका के विख्यात जीव-विज्ञानी ओडुबन ने अपने पूरे जीवनकाल में पशु-पक्षियों के कई चित्र बनाए।  उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब उनके द्वारा बनाए गए २०० चित्रों को, जो उनके जीवन की पूँजी थी, चूहों ने कुतर डाला। लेकिन उन्होंने एक बार पुनः अपनी कला द्वारा उन २०० चित्रों को कैनवास पर उतारा।

३. महान लेखक गोएथे ने १० साल की उम्र में लेखन- कार्य शुरू किया। पर उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना 'फॉस्ट' … वे तब लिख पाए जब वे ८० साल के हो चुके थे।

४. हार्वे ने आठ साल की कड़ी मेहनत और शोध के बाद …

५. किंग ब्रूस को, अपने देश स्कॉटलैंड को आज़ाद कराने के लिए, ६ बार हार का सामना करना पड़ा। पर उन्होनें अपनी कोशिशों को नहीं छोड़ा और अपने देश को आज़ाद करवाकर ही चैन की सांस ली।

६. डेमोस्थनीज़ मुँह खोलते तो हकलाना शुरू कर देते।  … पर आज पूरे विश्व में डेमोस्थनीज़ एक महान वक्त के रूप में जाने जाते हैं।

इन सभी उदाहरणों को पढ़ने के बाद वह कौन-सा शब्द है, जो आपके मस्तिष्क में उभर कर आता है? वह कौन-सी विशेषता है, जो इन सभी व्यक्तियों में समान रूप से देखने को मिलती है? वह है- 'धैर्य'! सब कुछ खत्म हो जाने के बाद पुनः आरम्भ करने के लिए जिस गुण की आवश्यकता पड़ती है, वह है- धैर्य! विरोध के पश्चात भी अपनी कृति के प्रति विश्वास रखना और सही समय का इंतज़ार करने का नाम है- धैर्य! अपने जीवन में कभी हार न मानकर प्रयास करते रहने का नाम है- धैर्य!

… क्या है धैर्य? केवल हाथ-पर-हाथ रखकर बैठे रहने का नाम धैर्य नहीं है। …

… अंग्रेजी की यह कहावत प्रचलित है- 'Good things come to those who wait patiently', … तो आपको भी 'धैर्य' तो रखना ही पड़ेगा।

… आज के मैनेजमेंट गुरु भी सफलता- प्राप्ति के लिए धैर्य को अपने जीवन में लागू करने की सलाह देते हैं।

धैर्य रखा कैसे जाए? कैसे अनेकों लोगों ने इस पर सवार होकर सफलता को हासिल किया? यहाँ तक कि प्रकृति के कण-कण से हमें ये सीखने को मिलता है। कैसे? ये सब पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए अप्रैल'१५  माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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