सन् १९७० की शुरूआत थी। मनोवैज्ञानिक प्रोफेसर वाल्टर मिशैल ने स्टैण्डफोर्ड युनिवर्सिटी में 'Delayed Gratification (विलंबित संतुष्टि)' पर एक प्रयोग किया। इस प्रयोग का उद्देश्य था- बच्चों में लुभावने प्रस्तावों का प्रतिरोध करने की योग्यता की जाँच करना।
अपने इस अध्ययन के लिए मिशैल ने ४ से ६ वर्ष की आयु के बच्चों को चुना। ... इस प्रयोग के दौरान हर बच्चे को एक कमरे में ले जाया गया। वहाँ उन्हें एक कुर्सी पर बिठाया गया। फिर उनके सामने रखी मेज पर उनकी पसंदीदा मार्शमैलो (एक प्रकार की टॉफी) रख दी गई । ... इससे पहले कि वे अपनी ललचाती जीभ को संतुष्ट करते, शोधकर्ताओं ने उनके समक्ष दो विकल्प रख दिए।
पहला विकल्प... वह यह कि वे सामने रखी मार्शमैलो को जल्दी से चट कर डालें। दूसरा विकल्प था- ... जो बच्चे १५ मिनटों तक ... खुद को मार्शमैलो खाने से रोक पाएँगे, उन्हें ईनाम के तौर पर एक और मार्शमैलो मिलेगी। ... ज़रा सोचिए, ऐसे में बच्चों की क्या प्रतिक्रिया रही होगी?
... इन १५ मिनटों के दौरान बच्चों ने खुद को मार्शमैलो खाने से रोकने के लिए बहुत अजीब- अजीब सी हरकतें की। जैसे कि कुछ बच्चों ने अपनी आँखों को अपने हाथों से ढक लिया। ... न खाने को जी ललचाएगा। कुछ बच्चे अपना ध्यान बटाने के लिए कमरे में इधर-उधर टहलने लगे। कुछ अपनी उत्तेजना को दबाने के लिए कभी मेज को लात मारते; तो कभी मार्शमैलो पर प्रहार करते, जैसे कि कपड़ों से भरे खिलौने पर मुक्केबाजी करते हैं। परन्तु आखिर में क्या परिणाम निकले?...
१. कुछ बच्चे ऐसे थे, जिन्होंने ... कमरे से बाहर निकलते ही मार्शमैलो चट कर डाली।
२. अधिकतर बच्चे ऐसे थे, जिन्होंने... १५ मिनटों के पूरे होने से पहले ही मार्शमैलो का सफाया कर डाला।
३. केवल एक तिहाई बच्चे इस प्रयोग में सफल हुए। ...
वाल्टर का यह शोध सन् १९७२ में प्रकाशित हुआ और 'स्टैण्डफोर्ड मार्शमैलो एक्सपेरिमेंट' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ...
... सारांशत: मिशैल इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि मार्शमैलो प्रयोग में सफल हुए बच्चे- सफल व सभ्य व्यक्ति बनकर समाज के सामने आए।
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मनोविज्ञान और अध्यात्म के एल्गोरिथम के अनुसार किस प्रकार एक तिहाई बच्चे इस प्रयोग में सफल हो पाए, इसको पूर्णत: जानने के लिए पढिए अप्रैल'१५ माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका!