भरत के मन के दीप- श्रीराम! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

भरत के मन के दीप- श्रीराम!

अश्विन शुक्ल की दशमी को यह धरा-धाम अत्यंत प्रफुल्लित हो उठी थी। उसके वक्ष-स्थल से एक दानवी शक्ति का विलोप जो हो चुका था। चँहु ओर ‘विजय' की धूम थी। एक हर्षौल्लास का वातावरण था। आज मानो हिंद महासागर  भी उछालें  मारकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रहा था।

पर वहीं उत्तर में... सैकड़ों कोस दूर बहती सरयू नदी में न हलचल थी और न ही उल्लास! वह बिल्कुल शांत, निस्तब्ध, स्थिर वेग से आगे बढ़ती जा रही थी। चलायमान होते हुए भी उसके जल में न जीवन था और न ही उमंग। वह गुमसुम सी थी। बहते रहना उसका कर्त्तव्य था, सिर्फ इसलिए  बह रही थी।

पर अचानक इस उमंगहीन बेला में जाने कहाँ से ठंडी हवा का एक झोंका आया! सरयू के जल-तन के हर एक कण को तरंगित कर गया। क्या यह शीत लहर  कोई सूचना लेकर आई थी? सरयू की कर्त्तव्य-साधना का पूर्ण फल बनकर आई थी? या यह पहले की ही भाँति प्रोत्साहन भरी एक थपकी भर थी? जो भी हो, पर नदी के पास इन सब बातों के लिए व्यर्थ  समय नहीं था। इस प्रतीक्षा-रुपी  परीक्षा की बेला में वह साधना में स्थित रहना चाहती थी। अपना ध्यान सिर्फ अपने साध्य में लगाए रखना चाहती थी। अनावश्यक  सोचना-समझना  तो वह जानती ही नहीं थी।

यही सरयू एक भक्त के हृदय में भी बह रही थी। कुछेक कोस दूर नंदीग्राम आश्रम उसकी साधना-स्थली थी। भक्त का नाम था-भरत। सरयू जैसी अवस्था में उसके दिन-रैन बीत रहे थे । उसके तपस्वी नेत्र अपने साध्य के दरस  के लिए तरस रहे थे। पल-प्रतिपल उन्हें बस अपने श्रीराम की ही आस थी। प्रभु का चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण होने को था। सिर्फ एक दिन ही शेष बचा था...

पर अभी तक उनके आने का कोई भी सन्देश नहीं मिला था। भरत का मन उदासी के सागर में डूबे जा रहा था। अनेक विचार उसके भीतर कौंध रहे थे...

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... इन बीतते वर्षो में भरत के शरीर ने विरह की प्रचंड तपिश झेली थी। वे कृशकाय हो चले थे ... जटाधारी तपस्वी की भाँति उनका मन अपने लक्ष्य  के प्रति  दृढ़ संकल्पित था। अंतर्मन में निरन्तर राम का सुमिरन था और कर्मो में उनकी आज्ञा की पूर्ति। श्रीराम द्वारा सौंपी गई अयोध्या को वे धरोहर के रूप में संभाल रहे थे।...

आज जब केवल एक दिन शेष था... भरत उद्विग्न हो उठे थे।...

किसने उनके मन को शांत किया? उनका विरही ह्रदय संसार के लिए कैसे आज भी प्रेरणा स्रोत है? समूचे संसार के लिए दीपावली पर्व अपने साथ क्या रत्न-माणिक्य लेकर आया है... ये सब जानने के लिए पूर्णतः पढ़िए नवम्वर'१५ माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका...

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