क्या संगीत भी अच्छा- बुरा हो सकता है? संगीत के प्रोफेसर ' टिम फिशर' इसका उत्तर एक उदाहरण से देते हैं। वे कहते हैं- अंग्रेजी भाषा के वर्ण 'e' को लें। तो क्या यह अच्छा 'e' होगा या बुरा 'e'? या फिर दोनों में से कुछ भी नहीं? तीसरा विकल्प ही सही है। 'e' न्यूट्रल है- न अच्छा है, न बुरा है। पर जब इस मूल वर्ण को अन्य मौलिक वर्णो से जोड़ कर पंक्ति का निर्माण करते हैं, तो? मसलन ' Praise the Lord ( प्रभु का गुणगान करें)' या ' I hate God ( मैं भगवान से नफरत करता हूँ )'। स्पष्ट देखा जा सकता है कि पहला वाक्य सकारात्मक या अच्छा है; पर दूसरा वाक्य नकारात्मक या बुरा है। अत: 'e' न्यूट्रल है, मगर उसे जिस स्थान पर और जिन वर्णों के साथ जोड़ा गया- उससे वाक्य अच्छा- बुरा अर्थ ले लेता है।
ठीक यही कहानी संगीत की है। संगीत मूलतः सुर, ताल और लय का मेल है। न्यूट्रल है। लेकिन जिन बोलों और भावों को इसमें गुँथा जाता है, उनके कारण रचना सकारात्मक या नकारात्मक रूप धारण कर लेती है। संगीतकार की मंशा के ढांचे में ढलकर संगीत अच्छा या बुरा हो जाता है।
यदि संगीत अच्छा है यानी उसका भाव मधुर है, बोल सभ्य और प्रेरणादायक हैं- तो वह युगों तक ह्रदयों को प्रीत की रीत सिखाता है। पर यदि उसका भाव कर्कश है, बोल असभ्य और वासनात्मक हैं, तो वह पूरे समाज को अज्ञानता की लोरी सुना कर अधोपतन की खाइयों में धकेल देता है। ऐसे हानिकारक गीतों कज सम्बन्ध में ग्रीक इतिहास के महान दार्शनिक ' प्लेटो' कहते हैं- संगीत के बदलते अंदाज़ का सीधा असर समाज पर पड़ता है। ऐसा संगीत शुरू में तो हानिरहित नज़र आता है। लेकिन धीरे- धीरे वह अपनी जड़ें फैलाकर पूरे समाज को दूषित कर देता है। इसीलिए ऐसे हानिकारक संगीत पर रोक लगा देना ही उचित है।
मगर हमारे वर्तमान समाज की एक विडम्बना है। हम प्लेटो के सुझाव से बिल्कुल विपरीत दिशा में बढ़ रहे हैं। संगीत की नकारात्मक शैली की ही आज धूम है और गूँज है।न्यूयॉर्क के एक्सेलसियर कॉलेज के छात्रों द्वारा किए गए एक शोध के मुताबिक 50 प्रतिशत से भी अधिक लोग ऐसे ही संगीत को पसंद करते हैं।... ऐसे संगीत को वे रोज़ाना लगभग ढाई घंटे सुनते हैं। पर क्या हमें, हमारे युवा वर्ग को और बच्चों की बढ़ती फसल को ऐसे नकारात्मक संगीत का भोजन परोसा जाना चाहिए?
इसके कैसे- कैसे हरजाने हमें भुगतने पड़ सकते हैं? जानने के लिए पढ़िए मार्च'16 माह की हिंदी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।