'अंधविश्वासी हो आप लोग! स्वार्थसिद्धि की थाप पर अंध-धारणाएँ फैला रहे हो! अवैज्ञानिक कोरे झूठ को आस्था-विश्वास का जामा ओढ़ा बैठे हो! यह तो दुनिया को बेवकूफ बनाना हुआ! आँखों में धूल झोंकना हुआ! बंद करो यह पाखंड! अपने गुरु की देह का ससम्मान संस्कार कर डालो!...'
28 जनवरी, 2014 की वह रात... जब गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी समाधिस्थ हुए- तब से ऐसे अनगिनत कटु और ह्रदयभेदी ताने समाज ने संस्थान पर बरसाए हैं। जवाब में, महाराज श्री के साधक-शिष्यों ने अपनी हज़ारों-हज़ार दिव्य अंतरानुभूतियाँ उन्हें सुनाईं, जिनमें उन्हें महाराज जी की समाधि और पुनः प्रकटीकरण का साक्षात दर्शन हुआ था। पर कौन समझा? त्रेता युग का एक ज़माना था, जब एक भक्त ने छाती फाड़ कर दिखाई, तो नर-नारी गद्गद होकर 'साधू-साधू!' कर उठे थे। पर इस कलिकाल में अंतरानुभूतियाँ सुन कर विरोधी व्यंग्य-बाण छोड़ने लगे। शिष्यों ने उन्हें गुरु-शिष्य परम्परा के खूब हवाले दिए। साधक साधकता की बोली खूब बोले।...
इसलिए अब समाज को समाज की बोली में समझाने का प्रयास अखण्ड ज्ञान के ये पृष्ठ कर रहे हैं। तर्क की बोली! गणित की बोली! विज्ञान की बोली! मैनेजमेंट की बोली! तथ्यों की बोली! ये सभी इन्द्रधनुषी बोलियाँ एक ही बुलंद आह्वान कर रही हैं- 'हमारे गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी समाधि में हैं। महाराज जी लौट कर आएँगे ही आएँगे!'
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... महाराज जी के समाधि में जाने के बाद विश्व-भर के लाखों अनुयायियों से उनका मत पूछा गया। महाराज जी के ये शिष्य हर वर्ग, स्तर, व्यवसाय, आयु के थे। जब इनकी धारणाओं का औसतन परिणाम निकाला गया, तो वह था- 'महाराज जी समाधि में हैं और पुनः अपनी देह में लौटेंगे।' ... The wisdom of crowds के अनुसार किसी समूह का औसतन मत व निर्णय अकेले व्यक्ति के मत से अधिक विश्वसनीय होता है। संस्थान का यह विश्वास कि 'महाराज जी समाधि से लौटकर आएँगे ही आएँगे' भी उनके लाखों शिष्यों का संगठित मत है। इसलिए संदेह व शंका का सवाल ही नहीं उठता।
कैसे? पूर्णत: जानने के लिए पढ़िए जुलाई'16 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।