पंचदिवसीय उल्लास- दीपावली | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

पंचदिवसीय उल्लास- दीपावली

दिवाली (कार्तिक अमावस्या)


हम सभी जानते हैं कि अमावस्या की अंधेरी रात को हर्षोल्लास से भरा दिवाली पर्व मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन प्रभु राम आसुरी शक्तियों का वध करके अयोध्या लौटे थे। सांकेतिक अर्थ यही है कि जीवन की दु:ख भरी काली रात्रि में जब ईश्वर का पदार्पण हो जाता है, तो हर अशुभ घड़ी शुभ में परिवर्तित हो जाती है।


दीपावली का यह दिन अन्य अनेक शुभ कारणों को भी लिए हुए है-


1. इस दिन न केवल प्रभु राम रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे, अपितु इसी दिन तेरह साल बाद पाण्डवों का हस्तिनापुर लौटना हुआ था।

2. भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर इसी दिन हिरण्यकशिपु का वध किया था।

3. इसी दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था।

4. जैन धर्म में इस दिन को ही महावीर जी के मोक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है।

5. इस दिन ही सिक्खों के छठे गुरु श्री हरगोबिन्द सिंह जी 52 अन्य राजाओं सहित कारागार से मुक्त हुए थे। इस कारण से सिक्ख भाई-बहन इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में धूमधाम से मनाते हैं।

6. स्वामी रामतीर्थ जी का जन्म व महाप्रयाण दोनों इसी दिन हुए थे।

7. इसी दिन आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी का निर्वाण हुआ था।

8. कठोपनिषद में नचिकेता का प्रसंग वर्णित है। उसके अनुसार बालक नचिकेता ने यमाचार्य के समक्ष आत्मज्ञान की जिज्ञासा रखी। यमाचार्य ने उसे ब्रह्मज्ञान प्रदान कर उसकी इस जिज्ञासा का शमन किया। नचिकेता सत्गुरु रूपी यमाचार्य से आत्मज्ञान प्राप्त कर यमलोक से भूलोक लौटा। उसके लौटने की खुशी में सभी नगरवासियों ने पूरे नगर में दीप जलाए। यह पावन घटना भी दीपावली के दिन ही घटी थी।


दीपावली को मनाने के उपरलिखित अधिकांश कारणों से एक बात प्रखर रूप से उभर कर आती है।... वह क्या है? क्या है पंचदिवसीय पर्वों का आध्यात्मिक मर्म? पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए अक्टूबर'2016 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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आओ, दिव्य मित्र को ढूँढ़ें!


कवि एडगर ए गेस्ट ने अपनी एक कविता में इस प्रकार 'दोस्ती' को परिभाषित किया है। कविता की कुछ पंक्तियों के भाव इस प्रकार हैं- 'दोस्त वही है, जो दु:ख-सुख के पलों में सदैव आपके साथ खड़ा रहे। जीवन के उतार-चढ़ाव में, हर परिस्थिति में तुम्हारा संबल बन कर हिम्मत दे। आपके स्वप्न चाहे कैसे भी क्यों न हों, सच्चा मित्र तो सदा उनके पूर्ण होने की प्रार्थना करता है... ।'


अब ज़रा विचार कीजिये- क्या वास्तव में दोस्त वही है, जो इन दावों पर खरा उतरे? जो रिश्ता इन सभी विशेषताओं को अपने अंदर समेट लेता है, क्या हम उसे 'सच्ची मित्रता' कह सकते हैं? शायद नहीं! वजह यह कि दु:ख-सुख सांझा करने के पीछे छिपा प्रयोजन...  दूसरों की अभिलाषाएँ पूर्ण होने के लिए की गई प्रार्थना में छिपी मंशा...  ज़्यादा महत्वपूर्ण है। मतलब कि दोस्ती निभाने के पीछे छिपी भावना अधिक अहमियत रखती है।

इसी अंतर्निहित भावना के आधार पर मित्रता को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है- पाशविक मित्रता, मानवीय मित्रता और दिव्य मित्रता। जब सम्बन्ध जोड़ने की वजह सिर्फ किसी तीसरे के प्रति बैर-भाव या द्वेष होती है, तो उसे 'पाशविक मित्रता' कहा जाता है। इस रिश्ते का अंत केवल विनाश ही है! पर जब मित्रता का आधार और उसमें निहित भावना सांसारिक उपलब्धियाँ होती हैं, तो यह 'मानवीय मित्रता' कहलाती है। नि:संदेह, मानवीय मित्रता का स्तर हर दृष्टिकोण से पाशविक मित्रता से बेहतर है। पर इन दोनों से हर पहलू में श्रेष्ठतर है- दिव्य मित्रता! मित्रता की इस  श्रेणी में न तो कोई बैर-भाव है, न ही स्वार्थ भाव। इसमें निहित है, केवल और केवल परमार्थ भाव! इस अलौकिक दोस्ती में सहभागी एक-दूसरे के आत्मिक जागरण के लिए, जीवन के वास्तविक लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए परस्पर सहयोग करते हैं। आइए, अब इन तीनों श्रेणियों की मित्रता पर एक-एक करके विचार करते हैं। इतिहास के उदाहरणों द्वारा इनके अंतर को समझने का प्रयास करते हैं।


पाशविक मित्रता- एक बार हिटलर ने बर्लिन शहर में एक रैली को संबोधित किया। श्रोताओं में अल्बर्ट स्पीयर नाम का आदमी भी था। वह हिटलर के भाषण से अत्यंत प्रभावित हुआ। इसलिए नाज़ी पार्टी में शामिल हो गया। आगे चलकर जब हिटलर कुलाधिपति बना, तो उसने स्पीयर को अपना वास्तुकार नियुक्त कर दिया। देखते ही देखते, स्पीयर का नाम हिटलर के विश्वसनीय लोगों की सूची में पहले स्थान पर आ गया। ...स्पीयर ने हिटलर के मिशन को सफल करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। स्पीयर ने अनेक रैलियों का आयोजन किया। हत्याएँ करने और धरती को लहूलुहान करने की कई मंत्रणाएँ रचीं। स्पीयर के विषय में कहा जाता है कि यही वह व्यक्ति है, जिसके नेतृत्व में हिटलर का युद्ध एक वर्ष तक लबा खिंचा। हिटलर की घोर नरसंहार और विध्वंस मचाने की मंशा पूरी हुई।...

कुल मिलाकर बात यह है, हिटलर और स्पीयर की इस घनिष्ठ साझेदारी ने मृत्यु का तांडव रचा और घोर विनाश को अंजाम दिया। पर उन दोनों का ही अंततः क्या हाल हुआ? इस मित्रता ने उन्हें विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया। जी हाँ! हिटलर की मृत्यु कितनी दुर्भाग्यपूर्ण थी... ये तो सब जानते हैं। पर स्पीयर का अंत कैसा था?...

 कैसा? साथ ही मानवीय व दिव्य मित्रता को पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए अक्टूबर'2016 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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