विध्वंसकारी नहीं है, महादेव का डमरू | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

विध्वंसकारी नहीं है, महादेव का डमरू

...अवश्य ही आपने भगवान शंकर की प्रतिमा को ध्यान से देखा होगा। महादेव एक हाथ में डमरू थामे रहते हैं। पर क्या

कभी आपने इस बात पर गौर किया कि ऐसा क्यों? इस वाद्य यंत्र को धारण करने के पीछे भगवान का आशय क्या हो

सकता है? क्या यह वाद्य यंत्र शिव की मात्र शोभा बढ़ाने वाला अलंकार है? आखिर भगवान आशुतोष के हाथ मे डमरू का

क्या प्रयोजन? क्या यह मात्र एक डुगडुगी है, जो 'तांडव' करते महादेव के हाथ में सुशोभित होती है? या इस डमरू का बजना किसी विध्वंस की ओर इशारा करता है? विचारिए, भगवान शंकर मदारी तो नहीं, फिर हाथ में डमरू क्यों थामा? उत्तर गूढ़ है और आध्यात्मिक भी...


अक्सर देखा गया है कि लोग भगवान शिव के डमरू को प्रलय से जोड़ देते हैं। पर इस डमरू कि डम-डम विनाश का नहीं, अपितु सृजन का नाद सुनाती है। इस दिव्य डमरू के निनाद से सम्पूर्ण सृष्टि का नव-निर्माण अथवा नवीनीकरण होता है। भगवान शिव द्वारा डमरू को ही अपना वाद्य-यंत्र चुनना निरुद्देश्य या कोई इत्तफाक नहीं है। असल में इस यंत्र की आकृति और स्वरूप ही कुछ ऐसा है, जो उत्पत्ति और विकास  की ओर इशारा करता है। आइए इस तथ्य को वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अंतर्गत जानते हैं...


'हाई-मास तारों के जन्म में' डमरू की आकृति!


सन् 2015 में, चिली के खगोल शास्त्रियों ने 'अल्मा टेलीस्कोप' की मदद से एक दुर्लभ खोज की। आखिरकार उन्होंने बहुत समय से पहेली बने हाई-मास तारों के जन्म से पर्दा उठा दिया। उनके अनुसार जब भी कोई इस प्रकार का तारा जन्म लेता है, तब भयंकर विस्फोट होता है।उससे गैस और धूल के सघन बादल बनते हैं। उन बादलों का बहाव तारे के केन्द्र से बाहर की ओर होता है। टेलीस्कोप से देखा गया कि गैस और धूल के इन बादलों का आकार रेतघड़ी या डमरू के जैसा होता है। इसलिए खगोल शास्त्रियों ने इस गुबार को 'ब्रह्मांडीय डमरू' का नाम भी दिया यानी कह सकते हैं कि वैज्ञानिक आधार पर भी डमरू का आकार 'उत्पत्ति' व 'नव-जीवन' का प्रतीक है।


वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अंतर्गत डमरू से जुड़ा दूसरा पहलू और साथ ही शास्त्रीय और आध्यात्मिक दृष्टिकोण को भी पूर्णतः

जानने के लिए पढ़िए दिसम्बर'16 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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