पाठकों! आप जानते ही होंगे की जनवरी माह की 14 तारीख को मकर संक्रांति का उत्सव पूरे भारतवर्ष में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। अधिकांश लोग यूँ तो इस पर्व को सिर्फ फसल-कटाई के त्योहार के तौर पर समझते और मनाते हैं। पर क्या आप जानते हैं? दक्षिण भारत में इस दिवस का महात्म्य अत्यंत पावन और आध्यात्मिक है। खास कर केरल प्रदेश में यह दिन भगवान 'अय्यप्पा' को समर्पित है। इस दिन विश्व-भर से करोड़ों भक्त भगवान अय्यप्पा के दर्शन करने के लिए सबरीमाला मन्दिर तक की यात्रा तय करते हैं।
पौराणिक इतिहास भगवान अय्यप्पा की कहानी पर प्रकाश डालता है। कहते हैं कि दुर्गा द्वारा महिषासुर वध के बाद 'महिषी' नामक दानवी अपने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने हेतु आतुर है उठी। उसने घोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान माँगा कि उसे केवल शिव व विष्णु के संयोग से उत्पन्न हुआ पुत्र ही मार सके। अत: महिषी के अत्याचारों से जगत को मुक्त करने हेतु कुछ काल के लिए महादेव और मोहिनी स्वरूप विष्णु का संसर्ग हुआ था। इसी मिलन से जन्मे थे, 'हरिहर पुत्र' जिन्हें दक्षिण भारत में 'अय्यप्पा स्वामी' के नाम से जाना जाता है। गाथा आगे बताती है कि इनका पालन-पोषणभारत के एक राजा 'राजशेखर' के द्वारा किया गया।और जब अय्यप्पा स्वामी धरती से अपनी लीला समेट कर दिव्य धाम को लौट गए, तब उनकी याद में राजा राजशेखर ने केरल में 18 पहाड़ियों के बीच स्थित पूंगवनम् नाम से विख्यात स्थल पर 'शबरीमला मंदिर' का निर्माण करवाया। इस मंदिर में अय्यप्पा स्वामी की मूर्ति को स्वयं भगवान परशुराम ने स्थापित किया। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि जिस दिवस भगवान परशुराम ने इस मूर्ति की स्थापना की, वह 'मकर-संक्रांति का ही शुभ दिन था। तभी से, अय्यप्पा स्वामी के दर्शन हेतु 'शबरीमला यात्रा' का भी प्रावधान आरंभ हुआ।
आज भी, दक्षिण भारत में, करोड़ों भक्त मकर-संक्रांति को शबरीमला यात्रा पूर्ण कर भगवान अय्यप्पा के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। यूँ तो भौगोलिक तौर पर यह यात्रा दुर्गम पहाड़ियों, घने जंगलों और कंटीले रास्तों से होकर गुज़रती है, परन्तु क्या मात्र अय्यप्पा स्वामी की मूर्ति के दर्शन कर लेना ही इस महान यात्रा का उद्देश्य है? या यह यात्रा भगवान अय्यप्पा को तत्त्व से जानने का शाश्वत रास्ता भी दर्शाती है? क्या यह तीर्थ सिर्फ क्रमबद्ध नियमों के पालन और बाहरी सफर तक ही सीमित है? या यह एक भक्त की आंतरिक यात्रा का आध्यात्मिक मानचित्र भी है? अखण्ड ज्ञान के माध्यम से 'शबरीमला यात्रा' के इन अनछुए पहलुओं को, उन गूढ़ और शाश्वत संकेतों को, जिन्हें यह यात्रा अपने भीतर समेटे हुए है को पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए जनवरी'17 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।