आभा मंडल आकर्षक कैसे बनता है? | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

आभा मंडल आकर्षक कैसे बनता है?

विज्ञान एक बहुत ही विशाल सागर है, जो कई वैज्ञानिक तथ्यों की नदियों के मेल से बना है। हमने अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका के माध्यम से कई बार दर्शाया है कि यह विज्ञान रूपी सागर अपने अंदर अनेकानेक बहुमूल्य आध्यात्मिक मोतियों को सहेजे हुए है। इस बार हम पुन: इस सिंधु की गहराई में उतरते हुए आपके समक्ष लाए हैं, मनोरंजन व समाजविज्ञान से जुड़े कुछ ऐसे प्रयोग जिनमें अध्यात्म के महान सूत्र संजोए हुए हैं।

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हेलो इफेक्ट

'हेलो इफेक्ट' एक ऐसा 'प्रभाव' है, जिससे एक द्रष्टा किसी इंसान या व्यक्ति के गुणों को देखकर उसकी ओर आकर्षित हो जाता है और उसे पसंद करने लगता है। मनोवैज्ञानिक एडवर्ड थार्नदीके ने इस इफेक्ट को यह नाम सन् 1920 में लिखे अपने लेख-  'A constant error in psychological ratings' में दिया।फिर सन् 1977 में, रिचर्ड इ. निस्बत और टिमोथी देकैंप विल्सन ने 'हेलो इफेक्ट' को एक प्रयोग के माध्यम से समझाया। वह प्रयोग इस प्रकार है।
प्रयोग-
इस प्रयोग में विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों को सहभागी बनाया गया। उन्हें एक मनोवैज्ञानिक अध्यापक का आकलन करना था। इसके लिए छात्रों को दो अलग-अलग वीडियो रिकॉर्डिंग्स दिखाई गईं। पहले वीडियो में, अध्यापक ने खुद को बहुत ही पसंदीदा ढंग से पेश किया था। अध्यापक ने ऐसे किरदार की भूमिका निभाई थी, जो विद्यार्थियों की बहुत कद्र करता है। वहीं, इसके विपरीत दूसरे वीडियो में अध्यापक ने खुद को बेहद नकारात्मक व कठोर रूप से पेश किया था। अलग-अलग ग्रुपों को ये वीडियो दिखाई गई थीं। किसी विद्यार्थी को दो वीडियो रिकार्डिंग्स की भनक भी न थी।
इस प्रयोग के पश्चात् दोनों ग्रुप के छात्रों से अध्यापक के बारे में उनके विचार माँगे गए। छात्रों को अध्यापक की काबीलियत व अपनी पसंद-नापसंद का 1-8 की श्रेणी में मूल्यांकन करना था। '1' का मतलब था- 'नापसंद' और '8' का मतलब था कि छात्रों ने अध्यापक को बहुत पसंद किया। अंततः पाया गया कि पहले ग्रुप के छात्रों ने अध्यापक को ज़्यादा अकं देते हुए आकर्षक और पसंदीदा माना। इसके विपरीत दूसरे ग्रुप ने अध्यापक को कम अंक प्रदान करते हुए, उनकी योग्यता पर भी सवाल उठाए।
एक ही अध्यापक का छात्रों के द्वारा अलग-अलग मूल्यांकन क्यों? 'हेलो इफेक्ट' ही इस प्रश्न का सटीक उत्तर है। कैसे? भारत के तत्त्वज्ञानी ऋषि इससे भी कई फलाँग ऊँची छलांग लगा कर आगे की बात करते हैं।

पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए फरवरी'17 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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