जहाँ मृत्यु भी मंगल है! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

जहाँ मृत्यु भी मंगल है!

भारतीय संस्कृति में तीर्थ-स्थलों का विशेष स्थान रहा है। यहाँ जनमानस मलिन से पवित्र होने की मनोकामना लेकर आते हैं। इन्हीं तीर्थों में से एक है- 'काशी'। काशी के संदर्भ में, स्कंदपुराण (4/96/123) में वर्णित है-


विद्यानां चाश्रयः काशी काशी लक्ष्मयाः परालयः।

मुक्तिक्षेत्रमिदं काशी काशी सर्वा त्रयीमयी।।


अर्थात् गंगा के तीर पर स्थित पावन धाम काशी विद्या, लक्ष्मी, और मुक्ति से युक्त एक सम्पन्न क्षेत्र है।

'वरुणा' और 'असी' नामक उपनदियों के संगम स्थल इस 'वाराणसी' या 'काशी' का उल्लेख महान फ्रांसिसी  इतिहासकार ' आहला द एन्यूल' ने भी खूब किया- 'काशी हमेशा से ही प्राचीन भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक राजधानी रही है। यह शुद्धिकरण और पवित्रता की स्थली मानी जाती है। काशी ज्ञान की केंद्र ज्ञानपुरी और आध्यात्मिक चेतना की धुरी भी है...।'


काशी में मृत्यु से मोक्ष प्राप्ति?

'काशी' की प्रसिद्धि का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष जिसके कारण असंख्य लोगों का वहाँ ताँता लगा रहता है, वह है इसका 'मोक्षप्रदायिनी' स्वरूप। तथ्यों के अनुसार काशी के 'मणिकर्णिका' और 'हरिशचंद्र' घाट पर प्रति वर्ष लगभग 30,000 शवों का दाह संस्कार किया जाता है। ऐसी मान्यता है, जिस भी व्यक्ति की मृत्यु वाराणसी में होती है, वह जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। इसी कारण से इतिहास के पृष्ठों में काशी का वर्णन 'अविमुक्त क्षेत्र', 'महाशमशान', 'मुक्ति-भूमि' आदि नामों से भी मिलता है। स्कंदपुराण (4/1/12) में उल्लिखित है कि काशी जगत की सीमाओं में बंधी होने के बावजूद भी सभी के बंधन काटने वाली है- '...या बुद्धा भुवि मुक्तिदा स्युरमृतं यस्यां मृता जन्तवः' अर्थात् काशी मोक्ष प्रदायिनी है।


परन्तु पाठकगणों! यहाँ प्रश्न उठना स्वभाविक है- एक स्थान पर मरने से मुक्ति कैसे संभव हो सकती है? यह तो सीधे-सीधे कर्मों के सिद्धांत या संस्कारों की जटिलता को ही चुनौती देना हुआ! कोई पूरी ज़िन्दगी निकृष्ट कर्म करे और फिर काशी में मृत्यु-शैय्या सजा कर मुक्ति पा ले!! पुण्य और पाप, दोनों कर्म-फलों का हिसाब किए बगैर ही, सबको एक समान मोक्ष-गति दे दी जाए! क्या इन दावों के पीछे सच में कोई वैज्ञानिक कारण है? या शास्त्रों में वर्णित ये तथ्य अतिरंजित हैं? आखिर क्या अलौकिकता है, गंगा के तट पर स्थित पावन-धाम- 'काशी' में जो उसको मुक्ति-दात्री बनाती हे? पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए मार्च'17 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

Need to read such articles? Subscribe Today