प्याज़-लहसुन खाएँ न खाएँ-आपका निर्णय है! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

प्याज़-लहसुन खाएँ न खाएँ-आपका निर्णय है!

कढ़ाई में तेल डालें। प्याज़ और लहसुन को पतला-पतला काट लें। तेल में जीरा डालें और फिर कटे हुए प्याज़-लहसुन को छोंक दें। धीमी आँच पर उन्हें तब तक भूनें, जब तक वे हल्के सुनहरे न हो जाएँ। उसके बाद कढ़ाई में भाजी डाल दें...।

आमतौर पर हर व्यंजन विधि में आपको यही पढ़ने को मिलता है। लज़ीज़ आहार यानी प्याज़-लहसुन का तड़का! विश्व भर में ऐसे भोज-लोलुप समाज हैं, जो प्याज़-लहसुन के बिना भोजन की कल्पना भी नहीं कर सकते।

स्वाद तो रही एक बात! भोजन-विशेषज्ञों ने स्वास्थ्य की दृष्टि से भी प्याज़-लहसुन के बहुत फायदे बताए हैं। अनेक-अनेक व्याधियों की औषधि प्याज़-लहसुन को ठहराया गया है। इन पर खूब शोध भी हुए हैं। अधिकांश परिणाम कहते हैं कि प्याज़-लहसुन सेहत के लिए अमृत तुल्य हैं। 

स्वाद और स्वास्थ्य वर्धक- दोनों हैं प्याज़-लहसुन! फिर ऐसा क्यों है कि संत समाज ने इनका सामूहिक बहिष्कार किया? ईश्वर को भोग अर्पित करते हुए, धार्मिक अनुष्ठानों में, साधक-समाज प्याज़-लहसुन से परहेज़ क्यों बरतता है?

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आमतौर पर देखा जाता है, ज़्यादातर लोग नवरात्रों में, श्राद्धों में, शिवरात्रि, जन्माष्टमी आदि त्यौहारों पर प्याज़-लहसुन की छुट्टी कर देते हैं। इनसे रहित सादा और सात्विक भोजन करते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि ये पूजा-पाठ या भक्ति के दिन होते हैं। इन अवसरों पर जो खाते हैं, ईश्वर को भोग लगाकर प्रसाद बनाकर खाते हैं। और उस पवित्र ईश्वर को प्याज़-लहसुन से युक्त भोजन का भोग लगा नहीं सकते। यही सोच कर लोग इन चुनिंदा दिनों में प्याज़-लहसुन से परहेज़ करते हैं।

पर जिन्होंने भगवान को ही मुख्य लक्ष्य बनाया है, उनके लिए तो हर दिवस ही 'भक्ति दिवस' होता है। हर आहार प्रसाद तुल्य हुआ करता है। ऐसे साधक कुछ भी मुख में डालते हैं, तो उससे पूर्व सिमरन करते हैं। प्रभु को अर्पित करते हैं। भगवान श्री कृष्ण भी गीता में स्पष्ट करते हैं-

जो व्यक्ति भगवान को अर्पित किया हुआ भोजन ही खाता है, वह पापों से मुक्त होता है। पर जो केवल अपने (स्वाद) के लिए ही भोजन बनाता व खाता है, वह पाप का भागी बनता है।

प्याज़-लहसुन आदि तामसिक पदार्थ साधना-सुमिरन में भी बाधक हैं। कैसे? जानने के लिए पढ़िए अप्रैल'17 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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