माँ, तुझे सलाम! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

माँ, तुझे सलाम!

... मई महीने का दूसरा रविवार... माँ को समर्पित एक विशेष दिवस! हर वर्ष यह दिन माँ के प्रेम, त्याग, तपस्या के प्रति कृतज्ञता तथा सम्मान प्रदर्शित करने के लिए मातृदिवस (Mother Day) के रूप में मनाया जाता है। आइए, इस दिवस के उपलक्ष्य में हम इतिहास की उन माताओं को याद करते हैं, जिनके नाम से माँ शब्द भी गौरवान्वित हो उठा था।

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वह माँ जिसने अपने हर बच्चे का भविष्य गढ़ा...

भारतीय इतिहास में मदालसा एक अविस्मरणीय माँ के रूप में चर्चित हैं। उनके चार पुत्र हुए। अपने पहले पुत्र विक्रांत के जन्म पर उसे रोता देखकर उन्होंने लोरी गाई-

शुद्धोअसि रे तात न तेअस्ति नाम

कृतं हि ततकल्पनयाधुनैव।

पञ्चात्मकं देहमिदं न तेअस्ति नैवास्य

त्वं रोदिषि कस्य हेतोः।।

- हे पुत्र! तू मत रो। तू निराकार, शुद्ध आत्मा है। तेरा कोई नाम नहीं है। ये दुःख तो तेरे शरीर से जुड़े हैं, जो पंचभूतों से निर्मित है। तू इससे परे है। तू वह है! वह! फिर किस कारण रोता है?
इस तरह मदालसा अनेक शिक्षाप्रद गीतों और आध्यात्मिक लोरियों से विक्रांत को गढ़ती गई। नतीजा- विक्रांत एक संन्यासी बना। उसने सांसारिक ताने-बाने न बुनकर ईश्वर की धुन गुनी। उनके दूसरे पुत्र सुबाहु व तीसरे पुत्र अरिमर्दन ने भी अपने बड़े भाई की ही राह पकड़ी। चौथे पुत्र अलर्क के होने पर राजा ने रानी से अपनी इच्छा ज़ाहिर करते हुए कहा कि वे अपने इस पुत्र को कुशल राजा बना देखना चाहते हैं। सो, मदालसा ने अलर्क को बचपन से ही न्यायप्रिय राजाओं की गाथाएँ सुनाईं व प्रजा के हित की नीतियाँ सिखाईं। फलस्वरूप अलर्क एक विवेकी व शक्तिशाली राजा बना। बाद में, उसने भी संतों की चरण रज पाई।

इस तरह मदालसा ने अपने हर बच्चे पर दिव्य प्रभाव डाला।

इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं, जहाँ एक माँ ने अपने बच्चे को हर परिस्थिति में ईश्वर पर विश्वास करना सिखाया। न्यूटन, एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्पष्ट कहते हैं कि उनकी माँ की बदौलत ही वे बचपन से ईश्वरोन्मुख हुए। फ्रासी जनरल फर्डिनेंड, प्रथम विश्व युद्ध के सैन्य कमांडर, 'Man of Prayer' यानी ईश्वर में अटूट आस्था रखने वाले के नाम से प्रख्यात हैं। इसके पीछे भी उनकी माँ ही थीं, जिन्होंने उन्हें हर हाल में ईश्वर से प्रार्थना और उन पर विश्वास करना सिखाया। जार्ज वाशिंगटन, संयुक्त अमरीका के प्रथम राष्ट्रपति में राजनीति और सामाजिक नैतिकता के पाठ भरने वाली भी उनकी माँ ही थीं, जिस कारण वे तन्मयता से देश सेवा कर पाए।
विस्तारपूर्वक अन्य प्रेरणास्पद उदाहरणों को जानने के लिए पढ़िए मई'17 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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