तनाव! चिड़चिड़ाहट! स्ट्रेस! घबराहट! बेचैनी! दुःख!- ये सब विशेषण हो चुके हैं हमारे जीवन के। परिणाम स्वरूप इंसान जीवन को सिर्फ और सिर्फ एक कठिन परीक्षा मान लेता है। परन्तु हमारे वैदिक ऋषि-मुनियों ने इस जीवन को 'सरल' भी कहा और 'कठिन' भी। कठिन तब है, जब जीवन भाग्य और परिस्थितियों का मोहताज़ हो। सरल तब है, जब हम अपनी जीवन कहानी खुद लिखते हैं। इस कहानी को लिखने के लिए एक ही शाश्वत कलम है। वह है, ध्यान-साधना! ब्रह्मज्ञान का ध्यान हमारे अस्तित्व के हर स्तर पर काम करता है। हमारे हर पक्ष, हर रंग, सम्पूर्ण स्वरूप को नव निर्मित कर देता है। कैसे? आइए जानें।
ध्यान करने वाले कम बीमार!
नियमित साधना हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए लाभकारी है। डॉक्टर ब्रूस बैरेट, यूनिवर्सिटी ऑफ विसकांसिन मेडिसन के असोसिएट प्रोफेसर ने एक स्टडी के तहत प्रयोग किया। इस प्रयोग में लोगों को तीन समूहों में बाँटा गया। पहले समूह ने अपनी दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं किया। दूसरे ने व्यायाम को जीवन का हिस्सा बनाया। तीसरे समूह ने साधना को जीवन में उतारा। अंततः प्रयोग के परिणामों का निरीक्षण किया गया। यह पाया गया कि साधना करने वाले समूह ने अपने ऑफिसों से औसतन सिर्फ 16 छुट्टियाँ लीं। व्यायाम करने वाले समूह ने औसतन 32 दिनों की छुट्टियाँ लीं। पहले समूह के लोग, जिन्होंने अपनी दिनचर्या में कोई फेरबदल नहीं किए, उन्होंने औसतन 67 दिनों की छुट्टियाँ लीं।
यह भी देखा गया कि साधना करने वाले समूह को फ्लू वायरस इंजेक्ट किया गया, तो इन साधकों के शरीरों ने बहुत अधिक मात्रा में एंटीबॉडी ( रोग प्रतिरोधी) तत्त्वों का निर्माण किया। इससे साधकों में वायरस से लड़ने की क्षमता बेहद बढ़ गई। जबकि ऐसा बाकी दोनों समूहों में देखने को नहीं मिला। अतः ध्यान प्रतिरक्षा तंत्र को मज़बूत करता है।
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प्रिय पाठकों, यूँ तो आज मेडिटेशन एक फैशन-नुमा कांसेप्ट बन गया है। जिसको देखो स्टाइल से कहता है- 'मैं मेडिटेशन करता/करती हूँ।' पर ध्यान की शाश्वत विधि कैसे मिलती है? किस ध्यान से जीवन के हर पक्ष और स्तर में परिवर्तन आता है? क्या हैं ध्यान के वास्तविक लाभ, जानने के लिए पढ़िए जून'17 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।