साधना, करो साधना, करो साधना से प्यार।
साधना करके ही होता साधक का श्रृंगार।।
साधना करके ही मिलता साध्य गुरुवर का प्यार।
संकल्पित हो करेंगे साधना, ये मन में लो अब धार।।
मुझे स्मरण है कि अगस्त 2009 में गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी ने मुझे 'साधना शिविर' लगाने की सेवा प्रदान की थी। उस समय महाराज जी के मुखमंडल पर अपने ब्रह्मज्ञानी साधकों के लिए जो ममता भरे भाव थे, वे आज भी मुझे स्मरण हैं। उन्हीं भावों का प्रसाद वितरित करने के लिए इस गुरुपूजा विशेषांक में साधना-शिविर लगाने की मेरी सेवा लगी है। तो आइए, श्रद्धा और विश्वास से पूरित होकर हम सभी साधक इस साधना-शिविर का लाभ लें। महाराज जी की समाधि से वापिस लौटने तक 'सच्चे सृजन साधक' बनकर दिखलाएँ।
साधना-शिविर का ध्येय
सन् 2009 में जब मुझे साधना-शिविर लगाने की सेवा मिली, तो मैंने महाराज जी से पूछा था- 'महाराज जी, साधना-शिविर में संगत को आपकी ओर से क्या संदेश देना है?'
महाराज जी ने एक ही दिव्य उद्बोधन किया-
तू काहे डोले प्राणिया,
तुद राखेगा सिरजनहार।
अर्थात् तुम सारी संगत से कहना कि वे क्यों संसार में इधर-उधर डोल कर अपना समय व्यर्थ कर रहें हैं! क्यों नहीं वे स्थिर होकर, अपने मन-चित्त को एकाग्र करके साधना करते? यदि वे ऐसा करेंगे, तो उनके जीवन की संभाल स्वयं ईश्वर करेगा।
अतः इस साधना शिविर का यही ध्येय है कि हम सभी साधक महाराज जी के इन वचनों को अपने जीवन में चरितार्थ कर पाएँ।
ब्रह्मज्ञानी साधक की रात्रि-चर्या
साधक की दिनचर्या बहुत हद तक निर्भर करती है, उसकी रात्रि-चर्या पर। मतलब कि दिनचर्या सही तरह से अनुशासित हो पाए, इसके लिए यह आवश्यक है कि साधक रात्रि से ही नियमों का पालन करे। इसलिए सबसे पहले हम बात करते हैं, साधक की रात्रि-चर्या की-
1) एक साधक को रात को शयनागत होने (बिस्तर पर जाने) से दो या ढाई घंटे पूर्व ही भोजन कर लेना चाहिए। भोजन हल्का व सुपाच्य हो। यदि आप रात को दूध पीते हैं, तो वह भी सोने से कम-से-कम दो घंटे पहले ही पी लें।
2) भोजन करने के बाद...
...ब्रह्मज्ञानी साधक की सम्पूर्ण रात्रि-चर्या, ब्रह्ममुहूर्त चर्या, ब्रह्ममुहूर्त में की जाने वाली साधना का महत्त्व व विधि और सम्पूर्ण विलक्षण योग शिविर जानने के लिए पढ़िए जुलाई'17 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।