शिखा-हमारे पूर्वजों का हेयर स्टाइल! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

शिखा-हमारे पूर्वजों का हेयर स्टाइल!

टिंग-टोंग! टिंग-टोंग! दरवाज़े की घंटी बजते ही सायरा उसकी तरफ फुर्ती से दौड़ी। दरवाज़ा खोलते ही सायरा ने अपने समक्ष मानो 15वीं सदी के मानव का दर्शन कर लिया। माथे पर चंदन का बड़ा सा तिलक, खादी का कुर्ता, सिर पर बोदी (शिखा), बगल में झोला...


इससे पहले कि सायरा कुछ पूछती, वो व्यक्ति बोले- 'क्या डॉ. सुब्रमण्यम घर पर हैं?'


सायरा ऊपर से नीचे तक उनको निहारती रही और फिर थोड़ा रुक कर बोली- 'जी हाँ!' सायरा ने उनको अंदर आने को कहा और अपने पिता को आवाज़ लगाई- 'पापा! आपसे कोई मिलने आए हैं।' अपने पुराने दोस्त एस. मनी अय्यर को देखते ही डॉ. सुब्रमण्यम ने उन्हें कस कर गले लगाया। फिर अपने परिवार से उनका परिचय करवाया। मोनीष और सायरा तो अय्यर जी को ऐसे निहार रहे थे, जैसे किसी दूसरे ग्रह का व्यक्ति उनके घर पर आ गया हो! उधर डॉ. सुब्रमण्यम और मनी अय्यर, अनेकों विषयों पर घंटों चर्चा करते रहे। रात्रि का भोजन करने के बाद अय्यर जी बोले, 'समय बहुत हो गया है, अब चलना चाहिए।'


डॉ. सुब्रमण्यम- आज का दिन यादगार दिन बन गया। जब भी कभी दोबारा दिल्ली आओ, तो ज़रूर मिलकर जाना।


फिर दोनों मित्रों ने एक दूसरे से विदा ली। सायरा और मोनीष मुस्कुराते हुए अपने पिता के पास आकर बैठ गए और उनके मित्र के पहनावे, उनकी बोली और हुलिये का खाका खींचने लगे।


सायरा- पापा! क्या आपके ये फ्रेंड (दोस्त) इसी सदी के हैं? इन्हें देखकर तो मुझे लगा कि जैसे मैं 15वीं सदी में पहुँच गई हूँ।


डॉ. सुब्रमण्यम (प्रश्नवाचक दृष्टि से)- क्यों? ऐसा विचित्र तो कुछ नहीं था उसमें!


सायरा ( मुँह बनाते हुए)- आपने उनका ड्रेसिंग सेंस ( पहनावा) देखा। कितना funny ( हास्यप्रद) था! ऐसा लग रहा था, जैसे फिल्म 'लगान' के सेट से सीधे यहीं आ रहे हों। तिलक, धोती, झोला...!


मोनीष ( हँसते हुए)- अरे! इससे भी अजीब तो उनका हेयर स्टाइल था। आगे से मैदान साफ और पीछे से लटकती चोटी। देखा नहीं! बात करते समय कैसे पेण्डुलम की तरह दाएँ-बाएँ हिल रही थी।


डॉ. सुब्रमण्यम- बच्चों! ऐसे किसी का मज़ाक बनाना अच्छी बात नहीं है। और मज़ाक केवल वही उड़ाते हैं, जो इसके महत्त्व को नहीं जानते। चोटी (शिखा) रखना तो सदियों से हमारी भारतीय परम्परा का अभिन्न अंग रहा है।इतिहास में इसे आर्यों की पहचान माना गया है।


मोनीष- पापा! क्या आप यह कहना चाह रहे हैं कि हमारी पहचान एक चोटी से है? It sounds ridiculous! (यह बेतुका लगता है।) क्या आप भी इन रूढ़िवादी परम्पराओं को मानते हैं?


डॉ. सुब्रमण्यम-बेटा! यह कोई रूढ़िवादी परम्परा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की हम भारतीयों को एक अमूल्य देन है। यह पूरी तरह से तर्क संगत और साइंटिफिक (वैज्ञानिक) है। पता है, इस छोटी सी शिखा रखने के कितने फायदे हैं! यह आपको physical (शारीरिक), mental (मानसिक) और spiritual (आध्यात्मिक) लाभ प्रदान करती है। इससे नेत्र ज्योति सुरक्षित रहती है। यह व्यक्ति के आई.क्यू. (बौद्धिक स्तर) और मेमोरी (स्मरण शक्ति) को बढ़ाने का काम करती है। इस स्थान से ही विवेक, दृढ़ता, प्रेम और संयम शक्ति जैसे गुणों का विकास होता है।


पश्चिम के एक वैज्ञानिक हुए हैं, 'सर चार्ल ल्यूक्स'। इन्होंने शिखा की महत्ता और इससे मिलने वाले फायदों पर रिसर्च की।... वे इस खोज से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने खुद शिखा रखनी शुरू कर दी।

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... एक छोटी सी दिखने वाली बोदी (शिखा) का! कितना लॉजिकल (तर्कसंगत), analytical (विश्लेषणात्मक) और enlightening (ज्ञानवर्धक) कान्सेप्ट है, शिखा के पूर्णतः लाभ जानने के लिए पढ़िए सितम्बर'17 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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