आओ साधकता की लौ से जगमग कर दें जहान! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

आओ साधकता की लौ से जगमग कर दें जहान!

'तमसो मा ज्योतिर्गमय' के पावन संदेश के साथ दीपावली एक बार फिर आई है। हर ओर जग को जगमग करते छोटे-छोटे दीपों की पंक्तियाँ हैं। ये दीपक जब एक साथ जलते हैं, तो लगता है मानो कह रहे हों- हम जलेंगे, प्रखरता से जलेंगे! तब तक प्रज्वलित रहेंगे, जब तक कि इस धरा के हर अंधियारे कोने को प्रकाशित न कर दें। दीपावली का यह पावन पर्व न केवल बाहरी जगत में प्रकाश लेकर आता है, बल्कि आंतरिक अंधियारे को दूर करने का आध्यात्मिक संदेश भी लाता है।
यूँ तो दीपावली के इस पर्व को मनाने के पीछे कई धार्मिक, पौराणिक एवं सांस्कृतिक कारण हैं, जिन्हें आपने कई बार पढ़ा होगा। पर इस पर्व के साथ जुड़े कुछ ऐसे दिव्य किस्से  भी हैं, जो शायद अनसुने व अनकहे ही रह गए हैं... आज उन्हीं में से कुछ को आपके समक्ष उजागर करने आए हैं।...

घटना करीबन ढाई हज़ार वर्ष पूर्व की है। बुद्धत्व प्राप्त कर ' गौतम बुद्ध' पहली बार दीपावली के दिन ही कपिलवस्तु पधारे थे। कपिलवस्तु के नगरवासियों ने जब अपने प्रिय राजकुमार सिद्धार्थ का ' सम्यक सम्बुद्ध' रूप देखा, तो वे भावविभोर हो उठे। पूरे कपिलवस्तु को दीपों से सजाकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की।

...

...............................
यूँ तो दीपावली के दिन धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी माँ लक्ष्मी और विघ्न-विनाशक श्री गणेश का विधिवत पूजन करने की परम्परा है। परन्तु पश्चिम बंगाल में इस दिन माँ दुर्गा के महाकाली स्वरूप की पूजा की जाती है।...

...............................

साईं बाबा रोज़ाना शाम होते ही मिट्टी का एक छोटा सा बर्तन लेकर किसी भी तेल बेचने वाले की दुकान पर चले जाते। उससे रात को द्वारका माई में चिराग जलाने के लिए थोड़ा सा तेल माँगने के लिए।...

...........................

गुरु-शिष्य परम्परा के ' दीपोत्सव' से सम्बंधित ये सभी अनूठे रत्न इसलिए लाये गए हैं कि हम अपनी साधकता की लौ को आस्था व विश्वास के घृत से सदैव प्रज्वलित रख पाएँ। कैसे? पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए अक्टूबर'17 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

Need to read such articles? Subscribe Today